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FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF ॐ लूहाहारेहिं तुच्छाहारेहिं अंतजीवीहिं पंतजीवीहिं लूहजीवीहिं तुच्छजीवीहिं
उवसंतजीवीहिं पसंतजीवीहिं विवित्तजीवीहिं अखीरमहुसप्पिएहिं अमज्जमंसासिएहिं ।।
ठाणाइएहिं पडिमंठाईहिं ठाणुक्कडिएहिं वीरासणिएहिं णेसज्जिएहिं डंडाइएहिं 卐 लगंडसाईहिं एगपासगेहिं आयावएहिं अप्पावएहिं अणिठुभएहिं अकंडूयएहिं ॥ मधुयके समंसुलोमणएहिं सव्वगायपडि कम्मविप्पमुक्के हिं समणुचिण्णा,
सुयहरविइयत्थकायबुद्धीहिं। धीरमइबुद्धिणो य जे ते आसीविसउग्गतेयकप्पा णिच्छ यववसायपज्जत्तकयमईया णिच्चं सज्झायज्झाणअणुबद्धधम्मज्झाणा
पंचमहव्वयचरित्तजुत्ता समिया समिइसु, समियपावा छव्विहजगवच्छला णिच्चमप्पमत्ता ॥ ॐ एएहिं अण्णेहि य जा सा अणुपालिया भगवई।
(प्रश्न. 2/1/सू. 109) यह भगवती अहिंसा वह है जो अपरिमित-अनन्त केवलज्ञान-दर्शन को धारण करने वाले, शीलरूप गुण, विनय, तप और संयम के नायक-इन्हें चरम सीमा तक पहुंचाने वाले, तीर्थ की संस्थापना करने वाले- प्रवर्तक, जगत् के समस्त जीवों के प्रति वात्सल्य
धारण करने वाले, त्रिलोकपूजित जिनवरों (जिनचन्द्रों) द्वारा अपने केवलज्ञान-दर्शन द्वारा ॐ सम्यक् रूप में स्वरूप, कारण और कार्य के दृष्टिकोण से निश्चित की गई है।
विशिष्ट अवधिज्ञानियों द्वारा विज्ञात की गई है-ज्ञपरिज्ञा से जानी गई और प्रत्याख्यानपरिज्ञा से सेवन की गई है। ऋजुमति-मन:पर्यवज्ञानियों द्वारा देखी-परखी गई है। विपुलमति
मनः-पर्ययज्ञानियों द्वारा ज्ञात की गई है। चतुर्दश पूर्वश्रुत के धारक मुनियों ने इसका 卐 अध्ययन किया है। विक्रियालब्धि के धारकों ने इसका आजीवन पालन किया है।
आभिनिबोधिक-मतिज्ञानियों ने, श्रुतज्ञानियों ने, अवधिज्ञानियों ने, मनः-पर्यवज्ञानियों ने, के वलज्ञानियों ने, आमाँ षधिलब्धि के धारकों, श्लेष्मौषधिलब्धिधारकों,
जल्लौषधिलब्धिधारकों, विपुडौषधिलब्धिधारकों, सर्वौषधिलब्धिप्राप्त, बीजबुद्धि-कोष्ठबुद्धिॐ पदानुसारिबुद्धि-लब्धि के धारकों, संभिन्नश्रोतस्लब्धि के धारकों, श्रुतधरों, मनोबली, वचनबली ॐ और कायबली मुनियों, ज्ञानबली, दर्शनबली तथा चारित्रबली महापुरुषों ने, मध्वास्रवलब्धिधारी,
सर्पिरास्रवलब्धिधारी तथा अक्षीणमहानसलब्धि के धारकों ने, चारणों और विद्याधरों ने, ॐ चतुर्थभक्तिकों- एक-एक उपवास करने वालों से लेकर दो, तीन, चार, पांच दिनों, इसी 卐 प्रकार एक मास, दो मास, तीन मास, चार मास, पांच मास एवं छह मास तक का अनशन* उपवास करने वाले तपस्वियों ने, इसी प्रकार उत्क्षिप्तचरक, निक्षिप्तचरक, अन्तचरक, प्रान्तचरक, .. रूक्षचरक, समुदानचरक, अन्नग्लायक, मौनचरक, संसृष्टकल्पिक, तज्जातसंसृष्टकल्पिक, EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEET
अहिंसा-विश्वकोश।1491
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