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(291) ॐ 1. अहावरे दोच्चे दंडसमादाणे अणट्ठादंडवत्तिए त्ति आहिज्जति।से जहानामए ' 卐 केइ पुरिसे जे इमे तसा पाणा भवंति ते णो अच्चाए णो अजिणाए णो मंसाए णो
सोणियाए एवं हिययाए पित्ताए वसाए पिच्छाए पुच्छाए वालाए सिंगाए विसाणाए दंताए दाढाए णहाए ण्हारुणाए अट्ठीए अट्ठिमिंजाएं, णो हिंसिंसु मे त्ति, णो हिसंति मे ॐ त्ति, णो हिंसिस्संति मे त्ति, णो पुत्तपोसणयाए, णो पसुपोसणयाए, णो अंगारपरिवूहणताए
णो समण-माहणवत्तियहेलं, णो तस्स सरीरगस्स किंचि वि परियादित्ता भवति, से हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता उज्झिउं बाले वेरस्स आभागी भवति, 卐 अणट्ठादंडे।
2. से जहाणामए केइ पुरिसे जे इमे थावरा पाणा भवंति, तंजहा-इक्कडा इ वा कढिणा इ वा जंतुगा इ वा परगा इ वा मोरका इ वा तणा इ वा कुसा इ वा कुच्चक्का इ वा पव्वगा ति वा पलालए इवा, ते णो पुत्तपोसणयाए णो पसुपोसणयाए 卐 णो अगारपोसणयाए णो समण-माहणपोसणयाए, णो तस्स सरीरगस्स किंचि वि
परियादित्ता भवति, से हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलंइपत्ता उद्दवइत्ता उज्झिठं बाले वेरस्स आभागी भवति, अणट्ठादंडे।
3. से जहाणामए केइ पुरिसे कच्छंसि वा दहंसि वा दगंसि वा दवियंसि वा वलयंसि वा णूमंसि वा गहणंसि वा गहणविदुग्गंसि वा वणंसि वा वणविदुग्गंसि वा ॥
तणाई ऊसविय ऊसविय सयमेव अगणिकायं णिसिरति, अण्णेण वि अगणिकायं LE णिसिरावेति, अण्णं पि अगणिकायं णिसिरंतं समणुजाणति, अणट्ठादंडे, एवं खलु म तस्स तप्पत्तियं सावजे त्ति आहिजति, दोच्चे दंडसमादाणे अणट्ठादंडवत्तिए त्ति आहिते।
___ (सू.कृ. 2/2/ सू. 696) जैसे कोई पुरुष ऐसा होता है, जो इन त्रस प्राणियों को न तो अपने शरीर की अर्चा (रक्षा या संस्कार के लिए अथवा अर्चा-पूजा के लिए मारता है, न चमड़े के लिए, न ही मांस के लिए और न रक्त के लिए मारता है। एवं हृदय के लिए, पित्त के लिए, चर्बी के लिए, पिच्छ (पंख), पूंछ, बाल, सींग, विषाण, दांत, दाढ़, नख, नाड़ी, हड्डी और हड्डी की मज्जा म (रग) के लिए नहीं मारता । तथा इसने मुझे या मेरे किसी सम्बन्धी को मारा है, अथवा मार ॥ जा रहा है या मारेगा, इसलिए नहीं मारता, एवं पुत्रपोषण, पशुपोषण तथा अपने घर की मरम्मत के
एवं हिफाजत (अथवा विशाल बनाने) के लिए भी नहीं मारता, तथा श्रमण और माहन
(ब्राह्मण) के जीवन-निर्वाह के लिए, एवं उनके या अपने शरीर या प्राणों पर किञ्चित् । NEFFERENEFFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEET
[जैन संस्कृति खण्ड/132
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