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卐 जे वि य इह माणुसत्तणं आगया कहिं वि णरगा उव्वट्टिया अधण्णा ते वि य卐 दीसंति पायसो विकयविगलरूवा खुज्जा वडभा य वामणा य बहिरा काणा कुंटा, पंगुला विगला य मूका य मम्मणा य अंधयगा एगचक्खू विणिहयसंचिल्लया
वाहिरोगपीलिय-अप्पाउय-सत्थबज्झबाला कुलक्खण-उक्किण्णदेहा दुब्बलॐ कुसंघयण-कुप्पमाण-कुसंठिया कुरूवा किविणा य हीणा हीणसत्ता णिच्वं ॐ सोक्खपरिवजिया असुहदुक्खभागी णरगाओ इहं सावसेसकम्मा उव्वट्टिया समाणा।
(प्रश्न. 1/1/सू.42) म जो अधन्य (हिंसा का घोर पापकर्म करने वाले) जीव नरक से निकल कर किसी भांति ॥ ॐ मनुष्य-पर्याय में उत्पन्न होते भी हैं, तो जिनके पापकर्म भोगने से शेष रह जाते हैं, वे प्रायः विकृत एवं विकल-अपरिपूर्ण रूप-स्वरूप वाले, कुबड़े, टेढे-मेढे शरीर वाले, वामन-बौने,
बधिर- बहरे, काने, टोटे-टूटे हाथ वाले, पंगुल-लंगड़े, अंगहीन, गूंगे, मम्मण-अस्पष्ट उच्चारण 卐 करने वाले, अंधे, खराब एक नेत्र वाले, दोनों खराब आंखों वाले या पिशाचग्रस्त, कुष्ठ आदि
व्याधियों और ज्वर आदि रोगों से अथवा मानसिक रोगों से पीड़ित, अल्पायुष्क, शस्त्र से वध : किए जाने योग्य, अज्ञानी-मूढ, अशुभ लक्षणों से भरपूर शरीर वाले, दुर्बल, अप्रशस्त संहनन
वाले, बेडौल अंगोपांगों वाले, खराब संस्थान-आकृति वाले, कुरूप, दीन, हीन, सत्त्वविहीन, ॐ सुख से सदा वंचित रहने वाले और अशुभ दुःखों से युक्त होते हैं।
{271) एवं णरगं तिरिक्ख-जोणिं कुमाणुसत्तं च हिंडमाणा पावंति अणंताई दुक्खाई पावकारी। एसो सो पाणवहस्स फलविवागो। इहलोइओ परलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो
महब्भयो बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुंचई ण य अवेदयित्ता # अत्थि हु मोक्खो त्ति एवमाहंसु णायकुलणंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरणामधेजो 卐 कहेसी य पाणवहस्स फलविवागं।
एसो सो पाणवहो चंडो रुद्दो अणारिओ णिग्घिणो णिसंसो महब्भओ बीहणओ तासणओ अणज्जाओ उव्वेयणओ य णिरवयक्खो णिद्धम्मो णिप्पिवासो णिक्कलुणो णिरयवासगमणणिधणो मोहमहब्भयपवड्डओ मरण-वेमणसो।
(प्रश्न. 1/1/सू.43) इस प्रकार (हिंसारूप)पापकर्म करने वाले प्राणी नरक और तिर्यंच योनि में तथा 卐 कुमानुष-अवस्था में भटकते हुए अनन्त दुःख प्राप्त करते हैं। FREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEER
अहिंसा-विश्वकोश।।23)