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___{266) तस्स य पावस्स फलविवागं अयाणमाणा वड्ढंति महब्भयं अविस्सामवेयणं ॥ 卐 दीहकाल-बहुदुक्खसंकडं णरयतिरिक्खजोणिं।
(प्रश्न. 1/1/सू.22) (पूर्वोक्त मूढ़ हिंसक लोग) हिंसा के फल-विपाक को नहीं जानते हुए, अत्यन्त भयानक एवं दीर्घकाल-पर्यन्त बहुत-से दुःखों से व्याप्त-परिपूर्ण एवं अविश्रान्त-लगातार निरन्तर होने वाली दुःख रूप वेदना वाली नरकयोनि और तिर्यञ्चयोनि को बढ़ाते हैं (अर्थात् बांधते हैं)।
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हिंसायां निरता ये स्युर्ये मृषावादतत्पराः।
चुराशीलाः परस्त्रीषु ये रता मद्यपाश्च ये॥ ये च मिथ्यादृशः क्रूरा रौद्रध्यानपरायणाः। सत्त्वेषु निरनुक्रोशा बह्वारम्भपरिग्रहाः॥ धर्मगुहश्च ये नित्यमधर्मपरिपोषकाः। मुनिभ्यो धर्मशीलेभ्यो मधुमांसाशने रताः॥ वधकान् पोषयित्वाऽन्यजीवानां येऽतिनिघृणाः। खादका मधुमांसस्य तेषां ये चानुमोदकाः॥ ते नराः पापभारेण प्रविशन्ति रसातलम्। विपाकक्षेत्रमेतद्धि विद्धि दुष्कृतकर्मणाम्॥
___ (आ. पु. 10/22-27) जो जीव हिंसा करने में आसक्ति रहते हैं, झूठ बोलने में तत्पर होते हैं, चोरी करते है 卐 हैं, परस्त्रीरमण करते हैं, मद्य पीते हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, क्रूर हैं, रौद्रध्यान में तत्पर हैं, प्राणियों
में सदा निर्दय रहते हैं, बहुत आरम्भ व परिग्रह रखते हैं, सदा धर्म से द्रोह करते हैं, अधर्म -
में सन्तोष रखते हैं, साधुओं की निन्दा करते हैं, मात्सर्य से उपहत हैं, धर्म सेवन करने वाले म परिग्रहरहित मुनियों से बिना कारण ही क्रोध करते हैं, अतिशय पापी हैं, मधु व मांस खाने 卐 में तत्पर हैं, अन्य जीवों की हिंसा करने वाले कुत्ता, बिल्ली आदि पशुओं को पालते हैं, अतिशय निर्दय हैं, स्वयं मधु, मांस खाते हैं और उनके खानेवालों की अनुमोदना करते हैं,
वे जीव पाप के भार से नरक में प्रवेश करते हैं। इस नरक को ही खोटे कर्मों के फल देने का ॐ क्षेत्र जानना चाहिए। ENEUROPUPUTUPSEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEELLELELLE
[जैन संस्कृति खण्ड/120
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