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TEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEM 卐 2. कोई पापी पुरुष किसी धनवान् की अनुचरवृत्ति, सेवकवृत्ति स्वीकार करके
(विश्वास में लेकर) उसी (अपने सेव्य स्वामी) को मार-पीट कर, उसका छेदन, भेदन
एवं प्रहार करके, उसकी विडम्बना और हत्या करके उसका धन हरण कर अपना आहार म उपार्जन करता है।
इस प्रकार वह महापापी व्यक्ति बड़े-बड़े पापकर्म करके महापापी के रूप में अपने आपको प्रख्यात कर लेता है।
3. कोई पापी जीव किसी धनिक पथिक को सामने से आते देख उसी पथ पर 卐 मिलता है, तथा प्रातिपथिक भाव (सम्मुख आकर पथिक को लूटने की वृत्ति) धारण करके ॐ पथिक का मार्ग रोक कर (धोखे से) उसे मारपीट, छेदन, भेदन करके तथा उसकी
विडम्बना एवं हत्या करके उसका धन, लूट कर अपना आहार-उपार्जन करता है। इस प्रकार महापापकर्म करने से वह अपने आपको महापापी के नाम से प्रसिद्ध करता है।
4. कोई पापी जीव (धनिकों के घरों में सेंध लगा कर, धनहरण करने की वृत्ति स्वीकार कर तदनुसार) सेंध डाल कर उस धनिक के परिवार को मार-पीट कर, उसका छेदन, भेदन, ताड़न और उस पर प्रहार करके, उसे डरा-धमका कर, या उसकी विडम्बना और हत्या करके उसके धन को चुरा कर अपनी जीविका चलाता है। इस प्रकार का महापाप करने के कारण वह स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध करता है।
5. कोई पापी व्यक्ति धनाढ्यों के धन की गांठ काटने का धंधा अपना कर धनिकों की गांठ काटता रहता है। (उस सिलसिले में) वह (उस गांठ के स्वामी) को मारता-पीटता - है, उसका छेदन-भेदन, एवं उस पर ताड़न-तर्जन करके तथा उसकी विडम्बना और हत्या 卐 करके उसका धन हरण कर लेता है, और इस तरह अपना जीवन-निर्वाह करता है। इस 卐 प्रकार के महापाप के कारण वह स्वयं को महापापी के रूप में विख्यात कर लेता है।
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{253) 6. से एगतिओ उरब्भियभावं पडिसंधाय उरब्भं वा अण्णतरं वा तसं पाणं महंता जाव उवक्खाइत्ता भवति। ऐसो अभिलावो सव्वत्थ।।
7. से एगतिओ सोयरिभावं पडिसंधाय महिसं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति। म 8. से एगतिओ वागुरियभावं पडिसंधाय मिगं वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंता मजाव उवक्खाइत्ता भवति।
9. से एगतिओ साउणियभावं पडिसंधाय सउणिं वा अण्णतरं वा तसं पाणं TUEENSEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEN
अहिंसा-विश्वकोश||13]