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(44) गुप्ति - ( मन, वचन, काय की असत् प्रवृत्ति को रोकना । )
( 45 ) व्यवसाय - ( विशिष्ट - उत्कृष्ट निश्चय रूप ।)
(46) उच्छ्रय - ( प्रशस्त भावों की उन्नति - वृद्धि, समुदाय ।)
( 47 ) यज्ञ - (भावदेवपूजा अथवा यत्न- जीव- रक्षा में सावधानतास्वरूप) (48) आयतन - ( समस्त गुणों का स्थान ।)
(49) अप्रमाद - ( प्रमाद - लापरवाही आदि का त्याग ।)
( 50 ) आश्वास - ( प्राणियों के लिए आश्वासन - तसल्ली । )
( 51 ) विश्वास - ( समस्त जीवों के विश्वास का कारण ।)
( 52 ) अभय - ( प्राणियों को निर्भयता प्रदान करने वाली, स्वयं आराधक को भी
निर्भय बनाने वाली ।)
( 53 ) सर्वस्य अमाघात - ( प्राणिमात्र की हिंसा का निषेध अथवा अमारीघोषणास्वरूप ।)
(54) चोक्ष- (चोखी, शुद्ध, भली प्रतीत होने वाली ।)
( 55 ) पवित्रा - ( अत्यन्त पावन - वज्र सरीखे घोर आघात से भी त्राण करने वाली ।)
( 56 ) शुचि - ( भाव की अपेक्षा शुद्ध-हिंसा आदि मलिन भावों से रहित, निष्कलंक ।)
( 57 ) पूता - (पूजा, विशुद्ध भाव से देवपूजारूप ।)
( 58 ) विमला - ( स्वयं निर्मल एवं निर्मलता का कारण ।)
( 59 ) प्रभासा - ( आत्मा को दीप्ति प्रदान करने वाली, प्रकाशमय । )
(60) निर्मलतरा - ( अत्यन्त निर्मल अथवा आत्मा को अतीव निर्मल बनाने
वाली।) इत्यादि (पूर्वोक्त तथा इसी प्रकार के अन्य ) स्वगुणनिष्पन्न - अपने गुणों से निष्पन्न हुए नाम (60 नाम) अहिंसा भगवती के हैं।
O हिंसा - निन्दा, हिंसा-त्याग एवं अहिंसा - अनुष्ठान के प्रतिपादक उपदेश
जिस
(195)
स्वकीयं जीवितं यद्वत्सर्वस्य प्राणिनः प्रियम् । तद्वदेतत्परस्यापि ततो हिंसां परित्यजेत् ॥
(उपासका 24/292) प्रकार सभी प्राणियों को अपना जीवन प्रिय है, उसी तरह दूसरों को भी अपना
जीवन प्रिय है। इस लिए हिंसा को छोड़ देना चाहिए।
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अहिंसा - विश्वकोश | 9 ||