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पंचविहो पण्णत्तो, जिणेहिं इह अण्हओ अणाईओ। हिंसामोसमदत्तं, अब्बंभपरिग्गहं चेव॥
(प्रश्र. 1/1/2) जिनेश्वर देव ने इस जगत् में अनादि आस्रव (कर्म-बन्ध के द्वार) को पांच प्रकार का कहा है-(1) हिंसा, (2) असत्य, (3) अदत्तादान (चोरी), (4) अब्रह्मचर्य और (5) परिग्रह।
{247} बधबंधरोधधणहरणजादणाओ य वेरमिह चेव। णिव्विसयमभोजित्तं जीवे मारंतगो लभदि॥
(भग. आ. 795) ___ मारने वाला इसी जन्म में वध, मारण, धनहरण, अनेक यातनाएं, वैर, देश-निष्कासन तथा हत्या करने पर जातिबहिष्कार का दण्ड पाता है।
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{248) अप्पाउगरोगिदयाविरूवदाविगलदा अवलदा य। दुम्मेहवण्णरसगंधदा य से होइ परलोए।
(भग. आ. 797 हिंसक परलोक अर्थात् जन्मान्तर में अल्पायु, रोगी, कुरूप, विकलेन्द्रिय, दुर्बल * मूर्ख, बुरे रूप, बुरे रस और दुर्गन्ध युक्त होता है।
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जावइयाई दुक्खाइं होंति लोयम्मि चदुगदिगदाई। सव्वाणि ताणि हिंसाफलाणि जीवस्स जाणाहि ॥
(भग. आ.799) इस लोक में चारों गतियों में जितने दुःख होते हैं, वे सब जीव-हिंसा के फल स्वरूप प्राप्त होते हैं- ऐसा जानो।
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[जैन संस्कृति खण्ड/110