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________________ (246) SHEESEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFEEP पंचविहो पण्णत्तो, जिणेहिं इह अण्हओ अणाईओ। हिंसामोसमदत्तं, अब्बंभपरिग्गहं चेव॥ (प्रश्र. 1/1/2) जिनेश्वर देव ने इस जगत् में अनादि आस्रव (कर्म-बन्ध के द्वार) को पांच प्रकार का कहा है-(1) हिंसा, (2) असत्य, (3) अदत्तादान (चोरी), (4) अब्रह्मचर्य और (5) परिग्रह। {247} बधबंधरोधधणहरणजादणाओ य वेरमिह चेव। णिव्विसयमभोजित्तं जीवे मारंतगो लभदि॥ (भग. आ. 795) ___ मारने वाला इसी जन्म में वध, मारण, धनहरण, अनेक यातनाएं, वैर, देश-निष्कासन तथा हत्या करने पर जातिबहिष्कार का दण्ड पाता है। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 如听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听那 {248) अप्पाउगरोगिदयाविरूवदाविगलदा अवलदा य। दुम्मेहवण्णरसगंधदा य से होइ परलोए। (भग. आ. 797 हिंसक परलोक अर्थात् जन्मान्तर में अल्पायु, रोगी, कुरूप, विकलेन्द्रिय, दुर्बल * मूर्ख, बुरे रूप, बुरे रस और दुर्गन्ध युक्त होता है। (249) जावइयाई दुक्खाइं होंति लोयम्मि चदुगदिगदाई। सव्वाणि ताणि हिंसाफलाणि जीवस्स जाणाहि ॥ (भग. आ.799) इस लोक में चारों गतियों में जितने दुःख होते हैं, वे सब जीव-हिंसा के फल स्वरूप प्राप्त होते हैं- ऐसा जानो। altF EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/110
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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