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(पांच संवरद्वारों में) प्रथम संवरद्वार अहिंसा है। अहिंसा के निम्नलिखित नाम हैं
(1) द्वीप-त्राण-शरण-गति-प्रतिष्ठा:- यह अहिंसा देवों, मनुष्यों और असुरों सहित समग्र लोक के लिए-द्वीप अथवा दीप (दीपक) के समान है-शरणदात्री है और + हेयोपादेय का ज्ञान कराने वाली है। त्राण है-विविध प्रकार के जागतिक दुःखों से पीड़ित भजनों की रक्षा करने वाली है, उन्हें शरण देने वाली है, कल्याणकारी जनों के लिए गतिगम्य है-प्राप्त करने योग्य है तथा समस्त गुणों एवं सुखों का आधार है।
(2) निर्वाण-(मुक्ति का कारण, शान्तिस्वरूपा है।) ___(3) निर्वृति -(दुर्व्यानरहित होने से मानसिक स्वस्थतारूप है।)
(4) समाधि -( समता का कारण है।)
(5) शक्ति -(आध्यात्मिक शक्ति या शक्ति का कारण है। कहीं-कहीं 'सत्ती' के स्थान पर 'संती' पद मिलता है, जिसका अर्थ है -शान्ति । अहिंसा में परद्रोह की भावना म का अभाव होता है, अतएव वह शान्ति भी कहलाती है।)
(6) कीर्ति -(कीर्ति का कारण है।) ___(7) कान्ति -(अहिंसा के आराधक में कान्ति-तेजस्विता उत्पन्न हो जाती है, अत: वह कान्ति है।) म (8) रति -(प्राणीमात्र के प्रति प्रीति, मैत्री, अनुरक्ति - आत्मीयता को उत्पन्न ज करने के कारण वह रति है।) ___(9) विरति -(पापों से विरक्ति।)
(10) श्रुताङ्ग -(समीचीन श्रुतज्ञान इसका कारण है, अर्थात् सत्-शास्त्रों के म अध्ययन-मनन से अहिंसा उत्पन्न होती है, इस कारण इसे श्रुतांग कहा गया है।)
(11) तृप्ति -(सन्तोषवृत्ति भी अहिंसा का एक अंग है।)
(12) दया -( कष्ट पाते हुए, मरते हुए या दुःखित प्राणियों की करुणाप्रेरित भाव से रक्षा करना, यथाशक्ति दूसरे के दुःख का निवारण करना-यह अहिंसा ही है।)
(13) विमुक्ति -(बन्धनों से पूरी तरह छुड़ाने वाली।) (14) क्षान्ति -(क्षमा, यह भी अहिंसारूप है।) (15) सम्यक्त्वाराधना -(सम्यक्त्व की आराधना- सेवना का कारण।)
(16) महती -(समस्त व्रतों में महान्-प्रधान-जिनमें समस्त व्रतों का समावेश हो जाए।) र (17) बोधि -(धर्म-प्राप्ति का कारण।) EFFERESTEREFERS
अहिंसा-विश्वकोश/89]
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