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编卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 22. जीवियंतकरण (जीवितान्तकरण) - हिंसा जीवन का अंत करने वाली है। 23. भयंकर (भयङ्कर)- हिंसा भय को उत्पन्न करने वाली है।
24. अणकर (ऋणकर) - हिंसा करना अपने माथे ऋण- कर्ज चढ़ाना है, जिसका
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भविष्य में भुगतान करते घोर कष्ट सहना पड़ता है।
25. वज्ज (वज्र-वर्ज्य)- हिंसा जीव को वज्र की तरह भारी बना कर अधोगति में ले जाती है, अत: वज्र है और आर्य पुरुषों द्वारा त्याज्य होने से वर्ज्य है।
26. परियावण - अण्हअ ( परितापन - आस्रव ) - प्राणियों को परितापना देने के कारण कर्म में आस्रव का कारण है ।
27. विणास (विनाश ) - प्राणों का विनाश करने वाली हिंसा है ।
28. णिज्जवणा (निर्यापना) - प्राणों की समाप्ति का कारण हिंसा है ।
29. लुंपणा (लुम्पना) - हिंसा प्राणों का लोप करने में कारण है।
• 30. गुणाणं विराहणा ( गुणानां विराधना) - हिंसा मरने और मारने वाले- दोनों के सद्गुणों को विनष्ट करती है, अतः वह गुणविराधनारूप है।
अहिंसा के प्रशस्त व शुभ नाम
य ९ सुयंग १० तित्ती ११ दया १२ विमुत्ती १३ खंती १४ सम्मत्ताराहणा १५ महंती १६ बोही १७ बुद्धी १८ धिई १९ समिद्धी २० रिद्धी २१ विद्धी २२ ठिई २३ पुट्ठी २४ कणंदा २५ भद्दा २६ विसुद्धी २७ लद्धी२८ विसिट्ठदिट्ठी २९ कल्लाणं ३० मंगलं ३१ पमोओ ३२ विभूई ३३ रक्खा ३४ सिद्धावासो ३५ अणासवो ३६ केवलीण ठाणं ३७ सिवं ३८ समिई ३९ सीलं ४० संजमो त्ति य ४१ सीलपरिघरो ४२ संवरो य ४३
गुत्ती ४४ ववसाओ ४५ उस्सओ ४६ जण्णो ४७ आययणं ४८ जयणं ४९ अप्पमाओ ५० अस्साओ ५१ वीसाओ ५२ अभओ ५३ सव्वस्स वि अमाघाओ ५४ चोक्ख ५५
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तत्थ पढमं अहिंसा जा सा सदेवमणुयासुरस्स लोयस्स भवइ दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा १ णिव्वाणं २ णिव्वुई ३ समाही ४ सत्ती ५ कित्ती ६ कंती ७ रई य ८ विरई 卐
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पवित्ता ५६ सूई ५७ पूया ५८ विमल ५९ पभासा य ६० णिम्मलयर त्ति एवमाईणि
णिययगुणणिम्मियाहं पज्जवणामाणि होंति अहिंसाए भगवईए ।
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[ जैन संस्कृति खण्ड /88
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(प्रश्न. 2/1/ सू.107)
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