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{238} मिच्छादसणरत्ता सनियाणा हु हिंसगा। इय जे मरन्ति जीवा तेसिं पुण दुल्लहा बोही॥
(उत्त. 36/257) जो मरते समय मिथ्या-दर्शन में अनुरक्त होते हैं, निदान से युक्त होते हैं, और हिंसक (वृत्ति से युक्त होते) हैं, उन्हें बोधि (सच्चा ज्ञान) बहुत दुर्लभ है।
{2391 बलिभिर्दुर्बलस्यात्र क्रियते यः पराभवः। परलोके स तैस्तस्मादनन्तः प्रविषह्यते ॥
(ज्ञा. 8/37/509) जो बलवान् पुरुष इस लोक में निर्बल का पराभव करता या उसे सताता है, वह 卐 परलोक में उससे अनन्तगुणा पराभव सहता है। (अर्थात्- जो कोई बलवान् निर्बल को
दुःख देता है तो उसका अनन्त-गुणा दुःख वह स्वयं अगले जन्म में भोगता है।)
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{240) यजन्तुवधसंजातकर्मपाकं शरीरिभिः। श्वभ्राद्रौ सह्यते दुःखं तद्वक्तुं केन पार्यते ॥
___ (ज्ञा. 8/11/483) जीवों के घात (हिंसा) करने से पापकर्म का उपार्जन होता है उसके जो कुफल अर्थात् दुःख नरकादिक गति में जीव द्वारा भोगे जाते हैं, वह वचन के अगोचर है, अर्थात् वचन से कहने में नहीं आ सकते।
{241)
तत्थ णं जे ते समणा माहणा एवमाइक्खंति जावेवं परूवेंति-'सव्वे पाणा *जाव सत्ता हंतव्वा अज्जावेतव्वा परिघेत्तव्वा परितावेयव्वा किलामतव्वा उद्दवेतव्वा',
ते आगंतुं छेयाए, ते आगंतुं भेयाए, ते आगंतुं जाति-जरा-मरण-जोणिजम्मण-संसारपुणब्भव-गब्भवास-भवपवंचकलंकलीभागिणो भविस्संति, ते बहूणं दंडणाणं बहूणं है * मुंडणाणं तज्जणाणं तालणाणं अंदुबंधणाणं जाव घोलणाणं माइ-मरणाणं पितिमरणाणं '
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अहिंसा-विश्वकोश|107]