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सत्थमेगे ससिक्खंति अतिवाताय पाणिणं। एगे मंते अहिजंति पाणभूयविहेडिणो॥ माइणो कटु मायाओ कामभोगे समारभे। हंता छेत्ता पगतित्ता आय-सायाणुगामिणो॥ मणसा वयसा चेव कायसा चेव अंतसो। आरतो परतो वा वि दुहा वि य असंजता॥ वेराई कुव्वती वेरी ततो वेरेहि रजती। पावोवगा य आरंभा दुक्खफासा य अंतसो॥
(सू.कृ. 1/8/4-8) कुछ लोग प्राणियों को मारने के लिए शस्त्र (या शास्त्र) की शिक्षा प्राप्त करते हैं और कुछ लोग प्राणियों और भूतों को बाधा पहुंचाने वाले मंत्रों का अध्ययन करते हैं।
मायावी मनुष्य ( राजनीति शास्त्रों से सीखी हुई) माया का प्रयोग कर कामभोगों 卐 (धन) को प्राप्त करते हैं। वे अपने सुख के अनुगामी होकर प्राणियों का हनन, छेदन और कर्तन करते हैं। असंयमी मनुष्य मन से, वचन से और अन्त में काया से, स्वयं या दूसरे से
या दोनों के संयुक्त प्रयत्न से (जीवों की हिंसा करते हैं, करवाते हैं।) वैरी वैर करता है। फिर ॐ वह वैर में अनुरक्त हो जाता है। हिंसा की प्रवृत्तियां मनुष्य को पाप की ओर ले जाती हैं। * अन्त में उनका परिणाम दुःखदायी होता है।
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{235) कुद्दाल-कुलिय-दालण-सलिल-मलण-खुंभण-रुं भण-अणलाणिलॐ विविहसत्यघट्टण-परोप्पराभिहणण-मारण-विराहणाणि य अकामकाई परप्पओगोदीरणाहि ॥
य कज्जप्पओयणेहिं य पेस्सपसु- णिमित्तं ओसहाहारमाइएहिं उक्खणण-उक्कत्थणE पयण-कुट्टण-पीसण-पिट्टण-भज्जण-गालण-आमोडण-सडण-फुडण-भंजण-छेयणम तच्छण-विलुंचण-पत्तज्झोडण-अग्गिदहणाइयाई, एवं ते भवपरंपरादुक्ख- समणुबद्धा 卐 अडंति संसारबीहणकरे जीवा पाणाइवायणिरया अणंतकालं।
__ (प्रश्न. 1/1/सू.41) 卐 कुदाल और हल से पृथ्वी का विदारण किया जाना, जल का मथा जाना और निरोध है
किया जाना, अग्नि तथा वायु का विविध प्रकार के शस्त्रों से घट्टन होना, पारस्परिक आघातों
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יפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפתכתבתכתכתבתבחכתנתבכתבהלהלהלהלהלהלהללהל שם
[जैन संस्कृति खण्ड/104