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FRE EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEM (18) बुद्धि -(बुद्धि को सार्थकता प्रदान करने वाली) (19) धृति -(चित्त की धीरता-दृढता।) (20) समृद्धि-(सब प्रकार की सम्पन्नता से युक्त-जीवन को आनन्दित करने वाली।) (21) ऋद्धि-(लक्ष्मी-प्राप्ति का कारण।) (22) वृद्धि-(पुण्य-धर्म की वृद्धि करना।) (23) स्थिति -(मुक्ति में प्रतिष्ठित करने वाली।)
(24) पुष्टि -( पुण्यवृद्धि से जीवन को पुष्ट बनाने वाली अथवा पाप का अपचय 卐 कर के पुण्य का उपचय करने वाली।)
(25) नन्दा-(स्व और पर को आनन्द-प्रमोद प्रदान करने वाली।) (26) भद्रा -(स्व का और पर का भद्र-कल्याण करने वाली।) (27) विशुद्धि-(आत्मा को विशिष्ट शुद्ध बनाने वाली।)। (28) लब्धि -(केवलज्ञान आदि लब्धियों का कारण।) (29) विशिष्ट दृष्टि -(विचार और आचार में अनेकान्तप्रधान दर्शन वाली।) (30) कल्याण -(कल्याण या शरीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का कारण।) (31) मंगल-(पाप-विनाशिनी, सुख उत्पन्न करने वाली, भव-सागर से तारने वाली।) (32) प्रमोद -(स्व-पर को हर्ष उत्पन्न करने वाली।) (33) विभूति -(आध्यात्मिक ऐश्वर्य का कारण।)
(34) रक्षा -(प्राणियों को दुःख से बचाने की प्रकृतिरूप, आत्मा को सुरक्षित म बनाने वाली।)
(35) सिद्धावास -(सिद्धों में निवास कराने वाली, मुक्तिधाम में पहुंचाने वाली,
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卐 मोक्षहेतु।)
(36) अनास्रव -(आते हुए कर्मों का निरोध करने वाली।) (37) केवलि-स्थान -(केवलियों के लिए स्थानरूप।) (38) शिव -(सुख-स्वरूप, उपद्रवों का शमन करने वाली।) (39) समिति -(सम्यक् प्रवृत्ति।) (40) शील -(सदाचार स्वरूपा, समीचीन आचार।) (41) संयम -(मन और इन्द्रियों का निरोध तथा जीवरक्षा रूप।) (42) शीलपरिग्रह -(सदाचार अथवा ब्रह्मचर्य के घर-चारित्र का स्थान।)
(43) संवर -(आस्रव का निरोध करने वाली।) EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEER [जैन संस्कृति खण्ड/90
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