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HEESENEFFERENEFFERENESENSEENEFFFFFEELAM जणं तुम्भे एवं आचक्खह, एवं भासह, एवं पण्णवेह, एवं परूवेह-सव्वे पाणा सव्वे
भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता हंतव्वा, अज़ावेतव्वा, परिघेत्तव्वा, परितावेयव्वा,
उद्दवेतव्वा। एत्थ वि जाणह णत्थेत्थ दोसो"- अणारियवयणमेयं । म वयं पुण एवमाचिक्खामो, एवं भासामो, एवं पण्णवेमो, एवं परूवेमो-'सव्वे ॥ पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा, ण अज्जावेतव्वा, ण परिघेत्तव्वा, ण परियावेयव्वा, ण उद्दवेतव्वा । एत्थ वि जाणह णत्थेत्थ दोसो।'-आरियवयणमेयं। -
पुव्वं णिकाय समयं पत्तेयं पुच्छिस्सामो-हं भो पावादुया! किं भे सायं दुक्खं । 卐 उताहु असायं? समिता पडिवण्णे या वि एवं बूया-सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूताणं ॥ सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं असायं अपरिणिव्वाणं महब्भयं दुक्खं ति त्ति बेमि।
(आचा. 1/4/2 सू. 135-139) जो व्यक्ति अत्यन्त गाढ़ अध्यवसायवश क्रूर कर्मों में प्रवृत्त होता है, वह (उन क्रूर कर्मों के फलस्वरूप) अत्यन्त प्रगाढ़ वेदना वाले स्थान में पैदा होता है। जो गाढ़ अध्यवसाय वाला न होकर, क्रूर कर्मों में प्रवृत्त नहीं होता, वह प्रगाढ़ वेदना वाले स्थान में उत्पन्न नहीं होता।
यह बात चौदह पूर्वो के धारक श्रुतकेवली आदि कहते हैं या केवलज्ञानी भी कहते 卐 हैं। जो यह बात केवलज्ञानी कहते हैं वही श्रुतकेवली भी कहते हैं। जो इस मत-मतान्तरों वाले लोक में जितने भी, जो भी श्रमण या ब्राह्मण हैं, वे परस्परविरोधी भिन्न-भिन्न मतवादों (विवादों) का प्रतिपादन करते हैं। जैसे कि कुछ मतवादी कहते
हैं-"हमने यह देख लिया है, सुन लिया है, मनन कर लिया है, और विशेष रूप से जान भी 卐 लिया है,(इतना ही नहीं), ऊंची, नीची और तिरछी सभी दिशाओं में सब तरह से भली-' * भांति इसका निरीक्षण भी कर लिया है कि सभी प्राणी, सभी जीव, सभी भूत और सभी सत्त्व
हनन करने योग्य हैं, उन पर शासन किया जा सकता है, उन्हें प्राणहीन बनाया जा सकता है।
इसके सम्बन्ध में यही समझ लो कि (इस प्रकार से) हिंसा में कोई दोष नहीं है।"- यह 卐 अनार्य (पाप-परायण)लोगों का कथन है।
इस जगत् में जो भी आर्य-पाप कर्मों से दूर रहने वाले हैं, उन्होंने ऐसा कहा है"ओ हिंसावादियों! आपने दोषपूर्ण देखा है, दोषयुक्त सुना है, दोष-युक्त मनन किया है, मैं आपने दोषयुक्त ही समझा है, ऊंची-नीची-तिरछी सभी दिशाओं में सर्वथा दोषपूर्ण होकर 卐 निरीक्षण किया है, जो आप ऐसा कहते हैं, ऐसा भाषण करते हैं, ऐसा प्रज्ञापन करते हैं, ऐसा है * प्ररूपण (मत-प्रस्थान) करते हैं कि सभी प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व हनन करने योग्य हैं,
उन पर शासन किया जा सकता है, उन्हें बलात् पकड़ कर दास बनाया जा सकता है, उन्हें RERYFRIEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEN
अहिंसा-विश्वकोश/971
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