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HEREHENSEENEFFFFFF FFFFFFFFER TO हिंसा के सम्बन्ध में खारपटिकों की अज्ञानपूर्ण गान्यता
(118) धनलवपिपासितानां विनेयविश्वासनाय दर्शयताम्। झटिति घटचटकमोक्षं श्रद्धेयं नैव खारपटिकानाम्॥
(पुरु. 4/52/88) थोड़े से धन के भी प्यासे (अर्थात् छोटे-मोटे धन को भी हड़प जाने के लिए व्याकुल) और शिष्यों को (भ्रमपूर्ण)दृष्टि देने वाले खारपटिकों द्वारा (किसी का मस्तक काट कर) यह कहना कि शरीर रूपी घड़े में बन्द आत्मा-रूपी चिड़िया को मुक्ति प्राप्त हो
गई है- कदापि श्रद्धा-योग्य (मान्य करने योग्य)नहीं है। ॐ ['खारपटिक' नामक दार्शनिक-सम्प्रदाय वालों की मान्यता है कि किसी को मार देना धर्म ही है, क्योंकि 卐 उसे मार देने से उसके शरीर में स्थित आत्मा बन्धन-मुक्त होती है और किसी को मार कर, उसकी आत्मा को बन्धन卐 मुक्त करना कोई अशुभ कार्य नहीं है। उक्त मान्यता भ्रम/अज्ञान के सिवा कुछ नहीं है।]
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FO हिंसा के सम्बन्ध में बौद्धों की अविवेकपूर्ण मान्यता
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{119) पिण्णागपिंडीमवि विद्ध सूले, केई पएज्जा पुरिसे इमे त्ति। अलाउयं वावि कुमारए त्ति, स लिप्पती पाणवहेण अम्हं॥ अहवा वि विभ्रूण मिलक्खु सूले, पिन्नागबुद्धीए णरं पएज्जा। कुमारगं वा वि अलाउए त्ति, न लिप्पती पाणवहेण अम्हं॥ पुरिसं व विभ्रूण कुमारकं वा, सूलंमि केई पए जाततेए। पिण्णा यपिंडी सतिमारुहेत्ता, बुद्धाण तं कप्पति पारणाए॥
(सू.कृ. 2/6/812-814) (शाक्यभिक्षु आर्द्रक जैन मुनि से कहने लगे-) कोई व्यक्ति खली के पिण्ड को यह पुरुष है' यों मान कर शूल से बींध कर (आग में) पकाए अथवा तुम्बे को कुमार (बालक) 卐 मान कर पकाए तो हमारे मत में वह प्राणिवध (हिंसा) के पाप से लिप्त होता है। अथवा वह ॥ 卐म्लेच्छ पुरुष मनुष्य को खली समझ कर उसे शूल से बींध कर पकाए, अथवा कुमार को तुम्बा
समझ कर पकाए तो वह हमारे मत में प्राणिवध के पाप से लिप्त नहीं होता। कोई पुरुष मनुष्य
को या बालक को खली का पिण्ड मान कर उसे शूल में बींध कर आग में डाल कर पकाए तो 卐 (हमारे मत में) वह (मांस-पिण्ड) पवित्र है, वह बुद्धों के पारणे के योग्य है।
Y EEEEEEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/54
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