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से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'पुरिसं पि हणइ, नोपुरिसे वि हणइ'?
गोतमा! तस्स णं एवं भवइ- 'एवं खलु अहं एगं पुरिसं हणामि' से एगं पुरिसं हणमाणे अणेगे जीवे हणइ । से तेणढेणं गोयमा! एवं वुच्चइ 'पुरिसं पि हणइ - नोपुरिसे वि हणति'।
(व्या. प्र. 9/34/2 (2))卐 [प्र.] भवगन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि वह पुरुष का भी घात करता है, नोपुरुष का भी घात करता है? 卐 [उ.] गौतम! (घात करने के लिए उद्यत) उस पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि मैं एक ही पुरुष को मारता हूं, किन्तु वह एक पुरुष को मारता हुआ अन्य अनेक जीवों
को भी मारता है। इसी दृष्टि से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि वह घातक, पुरुष को भी # मारता है और नोपुरुष को भी मारता है।
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___ {167) पुरिसे णं भंते ! आसं हणमाणे किं आसं हणइ, नोआसे वि हणइ? गोयमा! आसं पि हणइ, नोआसे वि हणइ।
(व्या. प्र. 9/34/3) [प्र.] भगवन्! अश्व को मारता हुआ कोई पुरुष क्या अश्व को ही मारता है या नोम अश्व (अश्व के सिवाय अन्य जीवों को भी) मारता है?
[उ.] गौतम! वह (अश्वघात के लिए उद्यत पुरुष) अश्व को भी मारता है और नोअश्व अश्व के अतिरिक्त दूसरे जीवों को भी मारता है।
(168) से केणठेणं? अट्रो तहेव। एवं हत्थिं सीहं वग्घं जाव चिल्ललगं।
(व्या. प्र. 9/34/3-4) [प्र.] भगवन्! ऐसा कहने का क्या कारण है? [उ.] गौतम! इसका उत्तर पूर्ववत् समझना चाहिए। इसी प्रकार, हाथी, व्याघ्र (बाघ) यावत् चित्रल तक समझना चाहिए।
अहिंसा-विश्वकोश।73]