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{172) से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव नोइसिं पि हणइ?
गोयमा! तस्स णं एवं भवइ- एवं खलु अहं एगं इसिं हणामि, से णं एगं इसिं हणमाणे अणंते जीवे हणइ से तेणढेणं निक्खेवओ।
(व्या. प्र. 9/34/6 (2)) [प्र.] भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है कि ऋषि को मारने वाला पुरुष ऋषि को भी मारता है और नोऋषि को भी?
[उ.] गौतम! ऋषि को मारने वाले उस पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि मैं 卐 एक ऋषि को मारता हूं, किन्तु वह एक ऋषि को मारता हुआ अनन्त जीवों को मारता है। इस *कारण हे गौतम! पूर्वोक्त रूप से कहा गया है।
[विवेचन- प्राणिघात के सम्बन्ध में सापेक्ष सिद्धान्त- (1) कोई व्यक्ति किसी पुरुष को मारता है तो कभी केवल उसी पुरुष का वध करता है, कभी उसके साथ अन्य एक जीव का और कभी अन्य जीवों का वध भी करता है, यों तीन भंग होते हैं, क्योंकि कभी उस पुरुष के आश्रित जूं, लीख, कृमि-कीड़े आदि या रक्त, मवाद आदि के आश्रित अनेक जीवों का वध कर डालता है। शरीर को सिकोड़ने-पसारने आदि में भी अनेक जीवों का वध संभव है।
(2) ऋषि का घात करता हुआ व्यक्ति अनन्त जीवों का घात करता है, यह एक ही भंग है। इसका कारण यह है कि ऋषि-अवस्था में वह सर्वविरत होने से अनन्त जीवों का रक्षक होता है, किन्तु मर जाने पर वह अविरत होकर अनन्त जीवों का घातक बन जाता है। अथवा जीवित रहता हुआ ऋषि अनेक प्राणियों को प्रतिबोध देता है, वे प्रतिबोधप्राप्त प्राणी क्रमशः मोक्ष पाते हैं। मुक्त जीव अनन्त संसारी प्राणियों के अघातक होते हैं। अत: उन अनन्त जीवों की रक्षा में जीवित ऋषि कारण है। इसलिए कहा गया है कि ऋषिघातक व्यक्ति अन्य अनन्त जीवों का घात करता है।]
FO हिंसा-सम्बन्धी दोषः आन्तरिक दुर्भावों के अनुरूप
(173) सा क्रिया कापि नास्तीह यस्यां हिंसा न विद्यते। विशिष्येते परं भावावत्र मुख्यानुषङ्गिकौ ॥ अघ्रन्नपि भवेत्पापी निघ्रन्नपि न पापभाक् । अभिध्यानविशेषेण यथा धीवरकर्षकौ ॥
. (उपासका. 26/340-41) ऐसी कोई 'क्रिया' नहीं है जिसमें हिंसा नहीं होती। किन्तु हिंसा और अहिंसा के लिए गौण और मुख्य भावों की विशेषता है। संकल्प में भेद होने से धीवर नहीं मारते हुए ॐ भी पापी है और किसान मारते हुए भी पापी नहीं है।
(मछली मारने के उद्देश्य/भाव के साथ मछलीमार पानी में जाल डाल कर बैठा है, उस समय कोई मछली 卐 जाल में न भी फंसे, फिर भी वह मछलीमार 'हिंसक' है। किन्तु अन्न उपजाने की भावना वाले किसान द्वारा हल चलाते 卐 ॐ हुए किन्हीं जीवों की हत्या हो भी जाए तो भी वह अहिंसक है।) REFERENEURSEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEER
अहिंसा-विश्वकोश/751