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Y EEEEEEEEEEEEEEM PO अहिंसा-अणुव्रत की सार्थकता (शंका-समाधान)
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सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वदासी-आउसंतो गोतमा! नत्थि णं से केइ परियाए जण्णं समणोवासगस्स एगपाणातिवायविरए वि दंडे निक्खित्ते, कस्स णं तं हेतं? संसारिया खलु पाणा, थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति, तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति, थावरकायातो विप्पमुच्चमाणा सव्वे तसकायंसि उववति, तेसिं च णं थावरकायंसि उववन्नाणं ठाणमेयं घत्तं।
(सू.कृ. 2/7/851) उदक पेढालपुत्र ने वाद (युक्ति) पूर्वक भगवान् गौतम स्वामी से इस प्रकार 卐 कहा- आयुष्मन् गौतम! (मेरी समझ से) जीव की कोई भी पर्याय ऐसी नहीं है, जिसे 卐 ॐ दण्ड न दे कर श्रावक अपने एक भी प्राणी के प्राणतिपात से विरतिरूप प्रत्याख्यान को
सफल कर सके! उसका कारण क्या है? (सुनिये) समस्त प्राणी परिवर्तनशील है, (इस
कारण) सभी स्थावर प्राणी भी त्रसरूप में उत्पन्न हो जाते हैं और कभी त्रसप्राणी # स्थावररूप में उत्पन्न हो जाते हैं। (ऐसी स्थिति में) वे सबके सब स्थावरकाय को छोड़ है 卐कर त्रसकाय में उत्पन्न हो जाते हैं, और कभी त्रसकाय को छोड़ कर स्थावरकाय में
उत्पन्न होते हैं। अतः स्थावरकाय में उत्पन्न हुए सभी जीव उन (त्रसकाय-जीववधत्यागी) श्रावकों के लिए घात के योग्य हो जाते हैं।
(1021 ___ सवायं भगवं गोयमे उदगं पेढालपुत्तं एवं वदासी-णो खलु आउसो! 卐 अस्माकं वत्तव्वएणं, तुभं चेव अणेप्पवादेणं अत्थि णं से परियाए जंमि' 卐समणोवासगस्स सब्वपाणेहिं सव्वभूतेहिं सव्वजीवेंहि सव्वसत्तेहिं दंडे निक्खित्ते,
कस्स णं तं हे तुं? संसारिया खलु पाणा, तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति, थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति, तसकायातो विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि भ उववजंति, थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे तसकायंसि उववज्जंति, तेसिं卐 च णं तसकायंसि उववन्नाणं ठाणमेयं अघत्तं, ते पाणा वि वुच्वंति, ते तसा वि बुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्ठिया, ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवति, ते अप्पतरागा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवति, इति से महया तसकायाओ उवसंतस्य उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जण्णं ORREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEES
अहिंसा-विश्वकोश/43)