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FFFFFFFFFFFFFg * (हिंसा के समर्थन में भ्रान्तियां और उनका निराकरण)
Oहिंसा-दोषः हिराक जीवों के वध में भी
{105) बहुसत्त्वघातजनितादशनाद्वरमेकसत्त्वघातोत्थम्। इत्याकलय्य कार्य न महासत्त्वस्य हिंसनं जातु ॥
(पुरु. 4/47/82) 'बहुत जीवों के घातक ये जीव जीवित रहेंगे तो बहुत पाप उपार्जित करेंगे'- इस प्रकार की दया करके हिंसक जीवों को मारना चाहिए- ऐसी मान्यता उचित नहीं है।
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[106) रक्षा भवति बहूनामेकस्यैवास्य जीवहरणेन । इति मत्वा कर्त्तव्यं न हिंसनं हिंस्रसत्त्वानाम्॥
___(पुरु. 4/47/83) 'इस एक ही (जीवघातक) जीव का घात करने से बहुत जीवों की रक्षा होती है'ऐसा मान कर हिंसक जीवों की हिंसा करना उचित है- ऐसी मान्यता युक्तिसंगत नहीं है।
[कुछ लोगों को यह भ्रान्ति है कि हिंसक जीवों को मारना 'हिंसा' नहीं, अपितु धर्म है क्योंकि उन्हें मारने से अनेक व्यक्तियों के प्राण बचाए जा सकते हैं। जैन आचार्यों की उद्घोषणा है कि राग-द्वेष-वशीभूत होने के कारण, हिंसक जन्तु को मारने वाला भी हिंसा-दोष का भागी होगा ही।]
O हिंसा-दोष : दुःखी जीवों के वध में भी
(107) बहुदुःखासंज्ञपिताः प्रयान्ति त्वचिरेण दुःखविच्छित्तिम्। इति वासनाकृपाणीमादाय न दुःखिनोऽपि हन्तव्याः॥
___ (पुरु. 4/49/85) अनेक दुःखों से पीड़ित जीव (मर कर) थोड़े समय में ही दुःखों से छुटकारा पा जावेंगे'- ऐसी वासना-रूपी छुरी लेकर दुःखी जीवों को भी मार दिया जाए-ऐसी मान्यता उचित नहीं है। 4) ) ))))
) ) ) ))) [जैन संस्कृति खण्ड/48