________________
; $$$$$$$$$$$$$$$$
馬
卐
( श्रा.प्र. 227 )
馬
कोई मनुष्य मृगघात के विचार में मग्न होकर कान पर्यन्त धनुष को खींचता हुआ
क उसके ऊपर बाण को छोड़ता है। इस प्रकार वह प्रकट में दोनों रूप में- द्रव्य से व भाव से कभी - उस मृग का वध करता है। 筆
卐
[ एक व्याध मृग के घात के विचार से धनुष की डोरी को खींचकर उसके ऊपर बाण को छोड़ देता है,
जिससे विद्ध होकर वह मृग मरण को प्राप्त हो जाता है। यहां व्याध ने मृग के वध का जो प्रथम विचार किया, यह तो
卐
卐
卐
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
वायुकायिक जीवों के घात के निमित्त से बन्ध का प्रसंग आता है, क्योंकि वे भी श्वास लेते
और उससे वायुकायिक जीवों का घात होता है। (किन्तु वे कषाय व प्रमाद से रहित होने के कारण हिंसा - दोष से मुक्त होते हैं ।)
卐
3. द्रव्य व भाव (मिश्रित) हिंसा
(87)
मिगवह परिणामगओ आयण्णं कड्ढिऊण कोदंडं । मुत्तूणमिसुं उभओ वहिज्ज तं पागडो एस ॥
'भावहिंसा' हुई, साथ ही उसने बाण को छोड़ कर उसका जो वध कर डाला, यह 'द्रव्य हिंसा' हुई। इस प्रकार से वह व्याध द्रव्य और भाव दोनों प्रकार से हिंसक होता है।]
4. शब्दात्मक निर्विकार हिंसा
(88)
उभयाभावे हिंसा धणिमित्तं भंगयाणुपुव्वी । तहवि य दंसिज्जंती सीसमइविगोवणमदुट्ठा ॥
( श्रा.प्र. 228 )
द्रव्य और भाव दोनों प्रकार से वध के न होने पर भंगकानुपूर्वी से उस प्रकार के
हिंसा नहीं है,
वाक्य के उच्चारण मात्र से - ध्वनि (शब्द) मात्र हिंसा होती है । यह वस्तुतः
फिर भी शिष्य की बुद्धि के विकास के लिए वह केवल दिखलाई जाती है, अतएव वह दोष
से रहित है।
過
[अभिप्राय यह है कि कभी-कभी गुरु अपने शिष्य की बुद्धि को विकसित करने के लिए उसे सुयोग्य विद्वान् बनाने के विचार से केवल शब्दों द्वारा मारने-ताड़ने आदि के विचार को प्रकट करता है, पर अंतरंग में वह दयालु रह कर उसके हित को ही चाहता है। इस प्रकार द्रव्य व भाव दोनों प्रकार से हिंसा के न होने पर भी वैसे शब्दों के उच्चारण मात्र से हिंसा होती है, जो यथार्थ में हिंसा नहीं है, क्योंकि इस प्रकार के आचरण में न तो मारण- ताड़न
किया जाता है और गुरु का मारण-ताडन संबंधी अभिप्राय भी नहीं होता है ।]
卐
卐卐
卐卐卐卐
अहिंसा - विश्वकोश | 371
筑