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1. पृथ्वीकायिक-आरम्भ, 2. अप्कायिक-आरम्भ, तेजस्कायिक-आरम्भ, 4.5 वायुकायिक-आरम्भ, 5. वनस्पतिकायिक-आरम्भ, 6. त्रसकायिक-आरम्भ, और 7.5 अजीवकायिक- आरम्भ।
1931
पंच दंडा पण्णता, तं जहा- अट्ठादंडे, अणट्ठादंडे, हिंसादंडे, अकस्मादंडे, ॐ दिट्ठीविप्परियासियादंडे।
(ठा. 5/2/111) दण्ड (हिंसा) पांच प्रकार के कहे गये हैं। जैसे1. अर्थदण्ड- प्रयोजन-वश अपने या दूसरों के लिए जीव-घात करना। 2. अनर्थदण्डः विना प्रयोजन जीव-घात करना। 3. हिंसादण्डः 'इसने मुझे मारा था,या मार रहा है, या मारेगा' इसलिए हिंसा करना 4. अकस्माद् दण्डः अकस्मात जीव-घात हो जाना। 5. दृष्टिविपर्यास दण्डः मित्र को शत्रु समझ कर दण्डित करना।
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(हिंसा-अहिंसा के कुछ ज्ञातव्य रहस्य)
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Oहिंसा/अहिंसा-रहस्य का व्याख्याता : योग्य गुरु
(94) को नाम विशति मोहं नयभङ्गविशारदानुपास्य गुरुन्। विदितजिनमतरहस्यः श्रयन्नहिंसां विशुद्धमतिः॥
(पुरु. 4/54/90) नय के भंगों को जानने में प्रवीण गुरुओं की उपासना करके जिनमत के रहस्य को # जानने वाला, ऐसा कौन निर्मल बुद्धिधारी है, जो अहिंसा का सहारा लेकर मूढ़ता को प्राप्त 卐 होगा? अर्थात् कोई नहीं होगा।
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अहिंसा-विश्वकोश।39)