Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 6. जीवाजीवामिगमसूत्र द्वीप-समुद्र आदि के स्वरूप का कथन मध्यमंगल है। क्योंकि निमित्तशास्त्र में द्वीपादि को परम मंगलरूप में माना गया है। जैसा कि कहा है-'जो जं पसत्थं अत्थं पुच्छइ तस्स प्रत्थसंपत्ती।' 'दसविहा सव्वे जीवा' यह अन्तिम मंगल है। सब जीवों के परिज्ञान का हेतु होने से इसमें मांगलिकता है। अथवा सम्पूर्ण शास्त्र ही मंगलरूप है। क्योंकि वह निर्जरा का हेतुभूत है। जैसे तप निर्जरा का कारण होने से मंगलरूप है। शास्त्र सम्यग्ज्ञानरूप होने से निर्जरा का कारण होता है। क्योंकि कहा गया है कि 'अज्ञानी जिन कर्मों को बहुत से करोड़ों वर्षों में खपाता है, उन्हें मन-वचन-काया से गुप्त ज्ञानी उच्छ्वासमात्र काल में खपा डालता है।'' इस प्रकार प्रयोजनादि तीन तथा मंगल का कथन करने के पश्चात अध्ययन का प्रारम्भ किया जाता है। 1. जं अण्णाणी कम्म खवेइ बहुयाहि वासकोडीहिं। तं नाणो तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमितणं / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org