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यह निश्चयपूर्वक कहना कठिन है, तो भी कल्पसूत्र की स्थविरावली में 'उच्चानागरी' शाखा का उल्लेख है।' यह शाखा आर्य 'शान्तिश्रेणिक' से निकली है । आर्य शान्तिश्रेणिक आर्य 'सुहस्ति' से चौथी पीढ़ी में आते हैं। आर्य सुहस्ति के शिष्य सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध और उनके शिष्य इन्द्रदिन्न, इन्द्रदिन्न के शिष्य दिन्न और दिन के शिष्य शांतिश्रेणिक हैं। यह शान्तिश्रेणिक आर्य वज्र के गुरु आर्य सिंहगिरि के गुरुभाई थे, इसलिए वे आर्य वज्र की पहली पीढ़ी में आते हैं। आर्य सुहस्ति का स्वर्गवास-काल वीरात् २९१ और वन का स्वर्गवास काल वीरात् ५८४ उल्लिखित है। अर्थात् सुहस्ति के स्वर्गवास-काल से वज्र के स्वर्गवास-काल तक २९३ वर्ष के भीतर पाँच पीढ़ियाँ उपलब्ध होती हैं। सरसरी तौर पर एक-एक पीढी का काल साठ वर्ष का मान लेने पर सुहस्ति से चौथी पीढी में होनेवाले शांतिश्रेणिक का प्रारम्भकाल वीरात् ४७१ आता है। इस समय के मध्य मे या कुछ आगे-पीछे शातिश्रेणिक से उच्चनागरी शाखा निकली होगी । वाचक उमास्वाति शांतिश्रेणिक की ही उच्चनागर शाखा में हुए है, ऐसा मानकर और इस शाखा के निकलने का जो समय अनुमानित किया गया है उसे स्वीकार करके यदि आगे बढ़ा जाए तो भी यह कहना कठिन है कि वा० उमास्वाति इस शाखा के निकलने के बाद कब हुए है। क्योंकि प्रशस्ति में अपने दीक्षागुरु और विद्यागुरु के जो नाम उन्होंने दिए है, उनमें से एक भी नाम कल्पसूत्र की स्थविरावली में था वैसी किसी दूसरी पट्टावली में नहीं मिलता। अतः उमास्वाति के समय के संबंध में स्थविरावली के आधार पर अधिक से अधिक इतना ही कहा जा सकता है कि वे वीरात् ४७१ अर्थात् विक्रम संवत् के प्रारम्भ के लगभग किसी समय हुए है, उससे पहले नही, इससे अधिक परिचय अभी अन्धकार में है।
२. इस अंधकार में एक अस्पष्ट प्रकाश-किरण तत्त्वार्थसूत्र के प्राचीनटीकाकार के समय सम्बन्धी उपलब्ध है, जो उमास्वाति के समय की अनिश्चित उत्तरसीमा को मर्यादित करती है। नयचक्र और उसकी टीका मे तत्त्वार्थसूत्र और भाष्य के वाक्यों को उद्धृत किया गया है
१. थेरेहितो णं अज्जसंतिसेणिएहितो माढरसगुहितो एत्थ रणं उच्चानागरी साहा निग्गया ।-कल्पसूत्रस्थविरावली, पृ० ५५ । आर्य शान्तिश्रेणिक की पूर्व परम्परा जानने के लिए इससे आगे के कल्पसूत्र के पृष्ठ देखने चाहिए।
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