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न थीं। चद्रला से पालदेवी को कुछ बातें तो मालुम हो गयी थीं तो भी उसका समर्थन पद्यलदेवी को नहीं मिला था। उसे इन दोनों राजकुमारियों के व्यवहार में कोई टेढ़ापन नहीं दिखा।
एक बार पालदेवी ने सीधा सवाल किया, "क्या पल्लव राजकुमारी के विवाह के बारे में मंचि दण्डनाथजी ने कुछ सोच-विचार भी किया है?"
"पालम नहीं। मैं उनसे कुछ नहीं पूछती। हम दोनों उनकी आज्ञानुवर्तिनी हैं। उनके साथ पोय्सलों के आश्रय में रह रही हैं। जब से यहाँ आश्रित होकर रहने लगी हैं, तब से एक-न-एक खास बात हो ही रही है। इसलिए हमारी ओर किसी का ध्यान नहीं गया। एक बार दण्डनाथजी ने मुझसे कहा था, 'हमारा सारा भविष्य पट्टमहादेवी के हाथ में सुरक्षित है। किसी की इच्छा मत रखें। जो भी कार्य होना होगा सो सब वे स्वयं कर देंगी। वे तो हमें अपनी बहनों से भी अधिक वात्सल्य से देखती हैं। उनके कहे अनुसार हम चलती रहती हैं। हमसे कोई ऐसा काम न होगा जिससे पट्टमहादेवी को किसी भी तरह का दुःख-दरद हो।" बड़ी ने आजिजी से कहा।
"उनके सौमांगल्य को बचानेवाली आपके त्याग के बारे में उन्होंने मुझे बहुत बताया है और अपनी हार्दिक कृतज्ञता भी व्यक्त की है। ऐसी देवी का मिलना बहुत विरल है। उनको कष्ट देना पुण्य को लात मारने के बराबर है।" पद्यलदेवी ने कुछ भावपरवशता में कहा।
"महारानीजी सब कुछ कह सकती हैं, उसके लिए आप अधिकृत हैं। पट्टमहादेवी के बारे में आप जितना समझती हैं उससे अधिक हम क्या जान सकती हैं ? हम तो अभी हाल में यहाँ आयी हैं। भाग्यहीन समझकर हमें नीची नजर से न देखकर वात्सल्य से ऊपर उठाया है, हममें आत्मविश्वास उत्पन्न किया है।"
"यह सब तो वे करेंगी ही। मैं स्वयं उनकी बातें न मानकर बहुत कष्टों का शिकार हुई हूँ। अब जितनी बुद्धि मुझमें है उतनी तब होती तो बहुत ही अच्छा होता। खैर, अब तो उन्होंने अपने राज्य के एक हिस्से का अधिकार ही आपको दे दिया है। अब तो वहीं जाकर आपको रहना चाहिए।"
___ "उन्होंने दिया सही; इसी से हम ले लें? हमें उस स्वातन्त्र्य से यह आश्रय हो भला लगता है।"
"हौं, सो तो है । सदा सन्निधान का सान्निध्य, भला तो लगेगा ही।" पद्मलदेवी ने अन्यमनस्क ही कह दिया।
"पट्टमहादेवी की करुणा हैं। उसके फलस्वरूप प्राप्त हुआ यह सान्निध्य। हमारे लिए तो इस जोड़ी का सान्निध्य साक्षात् भगवान् का ही सान्निध्य हैं। मैं उन्हें साक्षात् शिव-पार्वती ही मानती हूँ।"
पट्टयहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 51