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कुँवर बिट्टियण्णा बाहर जाकर देखता कि उसके पहले ही मायण और चट्टलदेवी अन्दर आ गये।
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'अरे, तुम लोग कब आये ?" शान्तलदेवी ने आश्चर्य से पूछा ।
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'अभी आ रहे हैं। राजमहल से पता चला कि सन्निधान यहाँ है। इसलिए सीधे यहीं चले आये।" माय ने ह
"सब कुशल है न? महासन्निधान यहाँ कब पधारेंगे ?" बिट्टियण्णा ने
पूछा।
" महासन्निधान यादवपुरी पहुँचने के बाद निश्चय करके सन्देश भेजेंगे। हम तलकाडु से एकदम सीधे यहाँ आये हैं।"
"रास्ते में किक्केरी की नानी को देख आये ?" शान्तलदेवी ने चट्टला की ओर देखकर पूछा ।
"तब की तरह अब कोई बन्धन नहीं था न ? इसलिए किक्केरी की याद तक नहीं रहीं। तो उस नानी की याद कैसे आए जो हैं ही नहीं ?* चट्टला ने कहा । "नानी याद न आए तो कोई चिन्ता नहीं, बल्लू की तो याद आयी
होगी ?" शान्तलदेवी ने पूछा।
"तो क्या ये ही चट्टला-मायण हैं 211 स्थपति ने बीच ही में पूछा। चट्टला और मायण ने तब स्थपति की ओर देखा ।
"ये स्थपति हैं।" शान्तलदेवी ने कहा ।
"इन्हें भी हमारे बारे में ज्ञात हो चुका है ?" चट्टलदेवी ने पूछा।
" जो भी आत्मीय हैं उनसे परिचित नहीं होना चाहिए ? इसीलिए आप लोगों के बारे में भी बताया है। हमारे स्थपति सिद्धहस्त हैं। इस मन्दिर के निर्माण में इनके - बुद्धि एक हो गये हैं। उनकी आत्मीयता इसके लिए धरोहर है। अच्छा, पीछे चलकर, आप लोग अपने आप अच्छी तरह परस्पर जान जाएँगे। चलो, राजभवन चलें। पहले बल्लू को देखें।" शान्तलदेवी ने कहा ।
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"वह खा-पीकर सोया हैं, इसीलिए हम इधर चले आये।" चट्टलदेवी ने
कहा
"तुम दोनों, सुना कि चोलों के बन्दी बन गये थे ?" शान्तलदेवी ने पूछा । "हम बन्दी हुए, इसीलिए जीते भी इतनी जल्दी। उनकी शक्ति को जानने के ही लिए तो हम बन्दी बने थे। फिर भी संकट से पार होकर आ गये।" चट्टला
बोली ।
"यहाँ से जो गुप्तचर तलकाडु में गये उनसे कोई सहायता तुम लोगों को मिली ?"
"वे जो अफवाहें फैलाते थे उनसे बहुत सहायता मिली। पट्टमहादेवी से दिशा
महादेव शान्तला भाग तीन : 311