Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 3
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 470
________________ "मेरा लक्ष्य जब तक पूरा न होगा, तब तक मैं अपना ब्यौरा नहीं दूंगा।" "तुम्हारा लक्ष्य क्या है ?" "हमने एक अनमोल वस्तु को खोया है। यह मिलनी चाहिए।" "क्या वह कोई अमूल्य वस्तु है ?" "नहीं, वह एक मेरे सम्बन्धी हैं।" "कर से खाज रहे हो?" "अभी हाल ही में खोज शुरू की है । परन्तु कई वर्षों से खोज का कार्य चल "ऐसी स्थिति क्यों आयी?" "मुझे नहीं पता।" "तो किसे पता है ?" "मेरी माँ को।" "कहाँ रहती हैं घे?" "हमारे गाँव में।" "तुम्हारा गाँव कौन-सा है?" "क्रीडापुर।" "यह तो बहुत दूर नहीं है!" "सन्निधान हमारे गाँव को जानती हैं?" "हाँ, शिवगंगा से कोई पाँच-छह कोस पर है। वहाँ शिल्पियों के कितने परिबार बसते हैं?" "छः घराने हैं।" "फिर भी यहाँ के मन्दिर के काम के लिए कोई क्यों नहीं आया?" "समय मिला होता तो आते। सभी घरानेवाले इधर-उधर काम करने के लिए जानेवाले ही हैं। स्त्रियों और बच्चे गाँव में रहते हैं। शायद इस मन्दिर की बात जब पहुँची, तब तक सम्भवत: कोई गाँव में न रहे होंगे।" "तुम तो रहे न?" "मैं भी तो तीन वर्षों से गाँव छोड़कर घूमता फिर रहा हूँ।" "तम्हारी माँ के तुम ही ज्येष्ठ पत्र हो?" "ज्येष्ठ-कनिष्ठ सब मैं ही हूँ।" "तो उस बेचारी को अकेली छोड़कर घूम रहे हो?" "उन्हीं के लिए तो घूम रहा हूँ। उनके आँसू देखकर..." 'आँसू क्यों?" "पति के अदृश्य हो जाने के कारण।" 472 :: पट्टमहादेवी शान्जला : भाग तीन

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