Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 3
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 473
________________ के परिणाम से मत-सम्बद्ध न होने पर भी लोग अपने पक्ष-विपक्ष लेकर तरहतरह की चर्चा करने में लगे रहे। "तो और क्या हो सकता है? एक का अन्न छीनने पर भगवान् आँख मूंदकर चुप नहीं बैठा रहेगा। दण्ड देगा ही।" "किसका क- किसने तीन दी?" "वही, वही उस गुप्त स्थपति ने, उससे पहले जो स्थपति बना था, उसे भगा दिया था न? यह अल्पायु का होने पर भी बड़ा बुद्धिमान था। जब यह काम उन्हीं को सौंपने का निर्णय हुआ था, इसे क्यों बीच में पड़ना चाहिए था? इसीलिए भगवान् ने ऐसा किया। यह लड़का उस स्थपति से भी छोटा है। अन्त में ऐसे छोटे से अपमानित होना ही पड़ा।" "वह स्थपति, कौन स्थपति?" __ "वही जी, उसका क्या नाम था, हरीश! वही!" "आप भी भले हो! किसी पुराने किस्से का इसके साथ क्या सम्बन्ध? सुनकर लोग हँसेंगे।" "हंसने की कोई बात नहीं। यह सब उनके किये का फल है।" "फिर भी यह लड़का बड़ा धैर्यवान है। हठ छोड़ी ही नहीं। 'हठ पकड़कर बड़ों का क्यों अपमान करोगे!' ऐसा बहुतों ने समझाया, तो भी वह टस से मस नहीं हुआ।" "वह सब ठीक है। इन दोनों के इस हद में आश्चर्य की बात यह है कि पत्थर दोषयुक्त होने पर इन्हें अपने हाथ क्यों कटाने चाहिए। दोनों अपने व्यवसाय में कुशल हैं। फिर किसी के हाथ कटें, वह कला की क्षति ही है। इस बात को समझाकर कम-- से-कम राजमहलबालों को इन्हें रोकना चाहिए था। ऐसा क्यों नहीं किया?" "दोनों मूर्ख हैं। शायद दोनों को बाहर करने का तन्त्र होगा।" "ऐसा भी कहीं हो सकता है ? ऐसे भव्य मन्दिर के निर्माण करनेवाले निष्णात शिल्पी को बाहर भेज देना न्यायसंगत होगा? हो सकता है, पत्थर में दोष...अन्दर के दोषों को उसे छेदकर देखा जा सकता है ?" .. "किन्तु अब यह विग्रह दोषयुक्त निकल जाय तो सब स्थगित हो जाएगा?" "क्या होगा, यह जानने के पहले ही उड़ जाने की बात क्यों? क्या उस विग्रह के पेट के अन्दर हवा भरी है ?" "लगता है, आपको वात की बीमारी है।" "किसे बात की बीमारी?" __ "कुपित क्यों होते हो जी? नहीं हो तो बता दें, बाल समाप्त। यदि हो तो मान लें, इसमें क्या दुर्भाव?" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 475

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