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मुझे वह सन्देश न पहुँचता तो पट्टमहादेवीजी को दिखाने की सूचना ही नहीं देता। हम कलाकारों को एक बात याद रखनी चाहिए। परम्परा ही धीरे-धीरे नवीनता को रूपित करती जाए तो कला को नया रूप नया जीवन देने का सा होता है। अब बलिपुर के ही सम्प्रदाय को लीजिए। एक श्रेष्ठ परम्परा के साथ नूतनता को रूपित करता आया है। आपके दादा ने जो परम्परा दिखायी उसके आधार पर आपके पिताजी ने नवीनता को रूपित किया है। बलिपुर की महिमा ही ऐसी है। आपका घराना ही उसके लिए साक्षी है। इनेजजी, चिक्कहम्पा, कल्लियण्णा, पदरि मल्लोज आदि अनेक शिल्पियों को बलिपुर ने दिया है। नवरंग के काम में चिक्कहम्पाजी का सूक्ष्म उत्कीर्णन, मल्लियण्णाजी का कौशल आदि को पार कर सकना आसान नहीं। इसी तरह गदग के शिल्पियों के हस्तकौशल की अपनी ही एक परम्परा है। बेलुगोल के शिल्पियों की अपनी एक विशिष्टता है। फिर उनमें बलिपुर का भी प्रभाव हैं। "
'इसका कारण है कि एक समय बलिपुर के ही शिल्पी वहाँ जा बसे
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थे।"
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'राझें
" दो परम्पराएँ जब मिलती हैं तब एक नयी सृष्टि होती है।" खड़ी है उसे रोकना दुःसाध्य हो गया है। स्थपतिजी के व्यक्तिगत जीवन के विषय में, यह कड़ा आदेश है कि किसी को कुछ पूछना आवश्यक नहीं। जब से आपकी प्रतिभा का परिचय मुझे और मेरे पिताजी को मिला तब से आपके मूल निवासस्थान को जानने का कुतूहल जाग उठा है किन्तु पूछ न सकने के कारण उसे अब तक दबाकर रखा है।"
"उससे किसी को कोई लाभ नहीं होगा। उस विषय में न ही पूछें।" "जैसी इच्छा!"
" तो पहले इन चित्रों को अपने पिताजी को बताकर उनकी सम्मति लेकर आइए । बाद में इन्हें पट्टमहादेवीजी के समक्ष रखूँगा । "
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'मेरी बात से आपको असन्तोष तो नहीं हुआ ?" दैन्य भाव से चावण ने पूछा। "नहीं, बिलकुल नहीं।"
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यह बात.
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'नहीं कहूँगा, किसी को नहीं बताऊँगा ।"
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"ठीक" कहकर चावुण वहाँ से चला गया।
स्थपति चावण के चित्रों का स्मरण करने लगा। उसकी चिन्तनधारा फिर बह चली: उनके वंश की परम्परा की छाप यहाँ प्रस्फुटित हुई है। रामोजा, दासोजा. चावण की बात शिल्पी - साम्राज्य में स्थायी रहनेवाली है। उनकी कृतियाँ भी वैसी ही भावी पीढ़ी के लिए बलिपुर के शिल्प के उत्कर्ष की रीति दर्शाने के लिए
314 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन