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पट्टमहादेवी को बहुत ही भायी।
" इनमें किस-किसको चुने ? सन्निधान ही चुनने की कृपा करें।" "चुनने का काम हम या आप न करें। पहले महासन्निधान, उदयादित्यरस, कुँवर बिट्टियण्णा, मैं और आप इतने लोग एक साथ बैठकर इन चित्रों को देखकर मत-संग्रह करें। बाद में आवश्यकता पड़ने पर कुछ प्रमुख शिल्पियों को राजमहल में बुलवाकर उनकी सम्मति भी लें।" शान्तलदेवी ने कहा ।
उनका मत स्थपति को ठीक लगा। तदनुसार मन्त्रणालय में बैठक हुई। बिट्टिदेव ने अपनी रुचि जताने में किसी तरह का संकोच नहीं किया। उन्होंने स्पष्ट कहा, "हमारे समय के सौन्दर्य की कल्पना स्थायी होकर शिल्प में प्रत्यक्ष रह जाएगी।" इन चित्रों को देखकर वह बहुत सन्तुष्ट थे ।
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अब इनमें से किस-किसको चुनना है, यह तो तय हो। इसलिए सन्निधान सूचित करें तो हम कृतज्ञ होगे।" स्थपति ने अपना और पट्टमहादेवी की ओर से भी प्रार्थना की।
बिट्टिदेव ने अपने भाई की ओर देखकर पूछा, "सभी रह सकती हैं, है न उदय ?"
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उदयादित्य ने छोटे दण्डनायक की ओर देखकर कहा, 'हमारे छोटे दण्डनायकजी का क्या विचार है ?"
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बिट्टियण्णा (छोटे दण्डनायक) ने कहा, 'आप सब अधिकारी हैं, मुझे इसमें क्या कहना है ?"
बिट्टिदेव ने प्रश्न किया, "तुम्हें बुलाया ही इसीलिए है कि राय दो, है न?" "हाँ।"
++ तो अब अपनी राय बताओ।"
" सबसे पहले मैंने ही सूचित किया था कि स्थपति की आवश्यकता के अनुसार भंगिमाओं को स्वयं पट्टमहादेवीजी ही दें तो अच्छा होगा। वह इच्छा अब मूर्त हुई है। वही जब चित्रित भी हुई हैं और चित्रित करते समय उसके समस्त सम्भावित पक्षों पर स्थपतिजी और पट्टमहादेवीजी ने पर्याप्त विचार किया है, तब उन पर राय देने या सलाह देने का प्रश्न ही नहीं है। जैसी कि महासन्निधान की सम्मति है, सभी चित्र लिये जा सकते हैं। "
" प्रतिभा भंगी किसने दी है, कल वह सत्य प्रकट हो भी जाय तो बहु किसी के लिए आक्षेप का विषय नहीं बनना चाहिए। इसलिए इनका परिशीलन आवश्यक हैं। ये सारे चित्र वैशिष्ट्यपूर्ण अवश्य हैं, फिर भी कला का लक्ष्य वहाँ रूपित सौन्दर्य का निर्विकल्प आस्वादन है। परन्तु आप लोगों में बहुतों को इस बात का ज्ञान नहीं रहता। जब हम उन्हें प्रकट करते हैं, इस प्रकटीकरण के पूर्व हमें
पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन : 4:5