Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 3
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 451
________________ तो इसको बनानेवाला, बनवानेवाला, प्रतिष्ठा करानेवाले सभी के लिए अशुभदायक होगा। इसलिए देखा।" । "तो सुपने समझा होगा कि इस कार्य में संलग्न किसी को यह पता नहीं?" "मैं ऐसा पूर्ख नहीं हूँ। सीखने की अभिलाषा...परीक्षण करने का एक अंग ही है न?" "तो तुमने इसे बनानेवाले की योग्यता की परीक्षा नहीं की। केवल विग्रह की परीक्षा की है न?'' "अपनी जानकारी की समीक्षा के लिए परीक्षा कर लेना आवश्यक प्रतीत हुआ।" ठीक उसी समय पट्टमहादेवी, उदयादित्य और कँवर बिट्टियण्णा वहाँ आये। स्थपति उठ खड़े हुए और हाथ जोड़े। युषक भी संकोच से पीछे सरककर खड़ा हो गया। "यह युवक कौन है?" शान्तलदेवी ने पूछा। "अपरिचित ! आज ही आया है। शिल्प कर्म में बड़ी रुचि रखता है।" शान्तलदेवी ने उसे सिर से पैर तक देखा। "इस अल्पवय में ही लगन है, तो लगता है, वह वंशानुगत ही होगा। तुम कहाँ से आ रहे हो, शान्तलदेवी ने यूछा! "क्षमा करें यह व्यक्तिगत बात है, इस सम्बन्ध में कुछ न पूछे।" शान्सलदेवी ने मुस्कराकर स्थपति की ओर देखा और कहा, "यह सम्भवतः शिल्पियों का रोग है। फिर हमें गाँव वंशजानकर करना भी क्या है? हम तो कृति से मनुष्य की सामर्थ्य को जाननेवाले हैं न! इसे कोई काम देने की सोच रहे हैं क्या? "देखेंगे! कल आने को कहा है। उतने में यदि कोई काम बचा हो तो देश लूँगा।" "वैसा ही कोजिए!" "पट्टमहादेवीजी से एक निवेदन करना है। महासन्निधान के ससुर और इस युवक के बीच कुंछ कटु संवाद हो गया है। वह कुछ बड़ा-धड़ाकर सन्निधान को बताएँ इससे पहले उस बातचीत की वास्तविकता का परिचय हो जाय तो अच्छा। जैसी आज्ञा हो।" स्थपति ने कहा। .. "आप बताएंगे या यह युवक ही बताएगा?" "जैसा उचित हो।" "क्यों बेटा?...क्या करोगे?" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तोन :: 453

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