Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 3
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 465
________________ "जब तक दोष न दिखे, तब तक दोष की सम्भावना भी कैसे करें?" आगमशास्त्री ने कहा। "मैं भी तो यही कह रहा हूँ।" "अभी तुम इस युग को देख रहे हो, कल के बच्चे हो। तुम कहो और हम मान जाएँ. यह कैसे होगा?" "मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि आप मान लें। दोष-दर्शन कराने का मुझे अवसर दें।" "यों ही समय का अपव्यय होगा।" आगमशास्त्री ने कहा। "यह आपका विचार है। समय का मूल्य कलाकार जितना जानते हैं, उतना शेष लोग नहीं जानते। आप लोगों के समय की अपव्ययता करने के मूल्य के रूप में मैं सन्नीभ और हारकर देने के लिए तैयार हूं न?" "यौवन के आवेश में यह हठ ठीक नहीं!" "यह यांचल्य का हठ नहीं। मैं शिल्पी हूँ। यह मेरे लिए परम्परा से प्राप्त कला है। दोषयुक्त शिला की प्रतिमा प्रतिष्ठा करने योग्य नहीं है। उसके दोष को पहचानकर दोष निवारण करके बाद को चाहे प्रतिष्ठा कराएँ। यह मूर्ति प्रतिष्ठा करने योग्य नहीं। इसे इसी तरह प्रतिष्ठित करेंगे तो उसे बनवाने की प्रेरणा देनेवाले, इसके निर्वहण करनेवाले, सबके लिए यह हानिकारक होगी। इसके बदले मेरा प्राण त्याग देना उत्तम होगा। हमारे राजवंश की हानि नहीं होनी चाहिए। मैं एक साधारण प्रजा मात्र हूँ। फिर भी यह मेरी मातृभूमि है। उसे स्थायी कीर्ति मिलनी चाहिए, न कि उसकी बुराई का स्वागत । मैं इसके लिए तैयार नहीं हूँ। स्थपतिजी से पूछ लीजिए। दोषपूर्णता की शंका होने पर ऐसी मूर्ति की प्रतिष्ठा की जा सकती है?" "जब उनकी राय में निर्दोष है तब..." "भिन्न मत हो तो क्या करना चाहिए, यह उन्हीं से पूछ लीजिए । उनका वंश भी कालानुक्रम प्राप्त शिल्पियों का ही रहा होगा। अब वे मूलतत्त्व को छोड़कर, भय के कारण हठ पकड़ लें तो मुझे यही मानना पड़ेगा कि यह परम्परा की 'चपलता का हठ है, स्वार्थ का प्रेरक है।" "एक तरह से सभी की राय अब जान ली गयी। युवक की एक बास को हम मान लेते हैं। अब भी यह निश्चित रूप से ज्ञात होने पर कि यह दोषरहित हैं, जब एक दूसरा शिल्पी यह कहता है कि इसमें दोष है तो उसकी परीक्षा हो जाना ही युक्त है। इसलिए इस बात को बढ़ाकर समय व्यर्थ करना वांछनीय नहीं। परीक्षा होने दें।" स्थपति ने अपना निर्णय सुना दिया। उनके कथन में एक विवेचक की दृष्टि रही। कटुता नहीं रही। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 467

Loading...

Page Navigation
1 ... 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483