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विजयोत्सव और मन्दिर प्रतिष्ठा की बात सोची है, वह पूरा हो। इस काम के लिए राज्य के प्रमुख सब आये ही हैं। एक नयी सेना का संगठन करेंगे। पोय्सल गय में लोगों की कमी नहीं ! सम्पूर्ण राज्य एक बृहत् शक्ति बनकर शत्रुओं को झुका सकता है, हरा सकता है।" शान्तलदेवी ने कहा।
"इस युद्ध में हमें अपनी अश्वशक्ति को बढ़ाना होगा। क्योंकि चालुक्यों की अश्वशक्ति कुण्ठित हो गयी है, ऐसा समाचार मिला है।" बम्मलदेवी ने कहा।
"इसे जानकर ही मैंने अच्छे घोड़ों को व्यापक स्तर पर खरीदने का प्रयत्न किया है। रानी बम्मलदेवीजी घोड़ों का परीक्षण भी कर आयी हैं। सन्निधान स्वीकृति देंगे तो उन्हें हम प्राप्त कर सकते हैं।"
"हमें कितने घोड़े मिल सकेंगे?" बिट्टिदेव ने पूछा। "पांच सौ।" "मूल्य क्या देना होगा?" "सहमति हो जाएगी।" "तो खरीद लेंगे।"
"तात्पर्य हुआ कि पाँच सौ सवारों को शिक्षण देना होगा। उन योद्धाओं और घोड़ों के लिए रक्षा-कवच बनवाने होंगे।" मंचि दण्डनाथ ने कहा।
"लोगों की कमी नहीं। शिक्षित करने के लिए बम्मलदेवीजी हैं। विशेष तरह के रक्षा कवच लौह आदि तैयार कर सकने वाले लोहार दोरसमुद्र में हैं। हमें तुरन्त कार्य में प्रवृत्त हो जाना चाहिए।" शान्तलदेवी ने कहा।
"जब कहते हैं कि छः माह लगेंगे तो अभी से इतनी चिन्तित क्यों?" राजलदेवी ने कहा।
"यह कैसे कह सकते हैं छः महीने ही होंगे या तीन महीने? छ: महीने मानकर उसी पर विश्वास करके देरी करना अच्छा नहीं। यह मेरी निश्चित धारणा है।" शान्तलदेवी ने कहा।
"पट्टमहादेवीजी का सोचना मुझे भी ठीक लगता है।" मंचि दण्डनाथ ने कहा।
इसी तरह से निर्णय हुआ। दूसरे ही दिन मन्त्रणा सभा का आयोजन हुआ। इस विषय पर विचार-विनिमय किया गया। पट्टमहादेवोजी की सलाह को मान्यता मिली। उसी के अनुसार कोष से धन लेकर मंचि दण्डनाथ कुछ अश्वारोही रक्षक दल को साथ लेकर चल पड़े।
इधर बेलापुरी पहुँचाने वाले आमन्त्रित और उत्सव के सन्दर्भ में एकत्रित लोगों को सुविधाओं की ओर ध्यान देकर व्यवस्था करने ही में अधिकारी वर्ग
442 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन