Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 3
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 419
________________ में सोचें नहीं।" " निर्णय पट्टमहादेवीजी का है। ऐसे में एक पक्षीय निर्णय हमसे तो होगा नहीं न?" कहकर बिट्टिदेव ने घण्टी बजायी । रेविमय्या अन्दर आया । बिट्टिदेव ने कहा, "रेविमय्या ! कुमार बल्लाल और छोटे बिट्टी को मन्त्रणालय में ले आओ, हम वहाँ रहेंगे।" शान्तलदेवी ने कहा, "बच्चों को वहाँ छोड़कर रानी लक्ष्मीदेवीजी से जाकर विनती करो कि यहाँ आवें।" बिट्टिदेव चले गये, रेविमय्या भी । शान्तलदेवी वैसे ही पलंग पर लेट गयीं। थोड़ी देर बाद रानी लक्ष्मीदेवी पट्टमहादेवी के अन्तःपुर में आयीं। वण्टी की ध्वनि ने ही सूचित कर दिया था निलदेवी ने छोटी रानी के द्वार पर पहुँचते ही उठकर द्वार तक जाकर उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बड़ी आत्मीयता से कहा, "मेरे बुलवाने पर आपके कार्यों में कोई बाधा तो नहीं हुई। जो भी हो, यहाँ आर्थी, बड़े ही आनन्द की बात है।" कहती हुई शान्तलदेवी ने उसे ले जाकर अपने पलंग पर बिठाया और उसके साथ बगल में खुद भी बैठ गयीं । रानी लक्ष्मीदेवी ने मन-ही-मन सोचा कि वहाँ से उठकर दूसरे आसन पर बैठे, परन्तु निर्णय न कर सकी। उसने कहा, "किसी तरह आज मेरे मन की बहुत दिनों की इच्छा पूरी हुई।" फिर भी उसके मन में यह विचार हो रहा था कि पट्टमहादेवी ने मुझे खुलवाया क्यों ? अवश्य कोई कारण रहा होगा। " इच्छा ?" शान्तलदेवी ने पूछा। "हाँ, पट्टमहादेवी से मिलने की, राजमहल के व्यवहार-आचरण आदि बातों के बारे में जानने की आकांक्षा । " EL 'क्यों न चली आय ? या फिर मुझे सूचना दे देत यही पर्याप्त था। यह कौनसी बड़ी बात थी ?" 14 'आपको अवकाश कहाँ ? जबसे मैं यहाँ आयी हूँ तबसे देख रही हूँ कि आप दिन-भर किसी-न-किसी कार्य में लगी ही रहती हैं। ऐसी स्थिति में मुझे मिलने का अवसर ही कहाँ ? इसीलिए चुप रह गयी।" "यह तो कोई कारण नहीं।" "तो फिर ?" " महासन्निधान ने रानी को अवकाश नहीं दिया।" रानी लक्ष्मीदेवी का चेहरा आरक्त हो उठा और वह लज्जावनत हो गयी। " इसमें क्या? मैं भी किसी समय तुम्हारी ही तरह थी। उस उम्र में क्याक्या आशा-आकांक्षाएँ हुआ करती हैं, इससे मैं अपरिचित नहीं हूँ। ऐसी आशा - आकांक्षा का तब का तब समाधान हो जाना चाहिए।" पट्टमहादेवी शान्सला भाग तीन 421

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