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नौकर-चाकरों में उसके प्रति कैसे विचार हैं सो सब जान चुकी हूँ।"
"उसके बारे में चर्चा मत करो! "क्यों वह भ्रष्टशील नहीं?"
"शील-अश्लील के बारे में चर्चा करने की प्रबुद्धता अभी तुममें आयी नहीं। इसीलिए हमने कहा कि इस विषय में चर्चा मत करो। एक बात याद रखो, उसके बीते जीवन के बारे में कोई उसके सामने कहे तो वह हमें सहन नहीं होगा. हम क्षमा भी नहीं करेंगे। यह बात रानी को भी याद रखना चाहिए।"
"यहाँ सारी बातें विचित्र हैं। शीलभ्रष्ट पवित्र है, उसे त्याग से मण्डित किया जाता है। धर्म का कोई नियम नहीं। उस पर हृदय-वैशाल्य, धर्म-सहिष्णुता, सर्वधर्म की समानता का आलेप किया जाता है। तमिलनाडु में, जिसे हमने कभी नहीं देखा-सुना ऐसी बहुत विचित्र-विचित्र बातें यहाँ इस पोयसल राज्य में भी देखने-सुनने को मिलती हैं।"
"वहाँ नहीं हैं, इसलिए ये बातें विचित्र-सी लगती होंगी। यहाँ के जीवन में · मिल जाने पर यहाँ की बातें अनुकरणीय लगेंगी। आचार्य-जैसे महानुभाव को शान्ति
की खोज में अपने जन्म-प्रदेश को छोड़कर यहाँ आना पड़ा। ऐसी स्थिति में विचित्र कहाँ है यह स्वयं विदित है। धर्मान्धता से देव-द्वेष उत्पन्न होता है। मनो-वैशाल्य से मत-सहिष्णुता और उससे प्रेम उत्पन्न होकर, वह उमड़ पड़ता है। हमारा-तुम्हारा विवाह तमिलनाडु में सम्भव हो सकता था?"
"मुझे इतना नहीं पता1 फिर भी, कह सकती हूँ कि यह विवाह सम्भव नहीं हो सकता था वहाँ।"
"इसीलिए विषय का पूर्ण-परिचय जब तक न हो, तब तक टीका-टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। और फिर जल्दबाजी में कोई भी बात पूरी तौर से समझ में नहीं आती। शान्त होकर सहनशीलता से व्यक्ति और विषय, दोनों को समझना सीखो। बाद को तुम स्वयं हमें सिखा सकोगी।"
"आज की सीख, सीखनेवाले पाठ का एक बहुत बड़ा अंश है। बातचीत आरम्भ करते समय मुझे लगा था कि मैं सन्निधान के क्रोध की आहुति हो गयी हूँ।
परन्तु.."
"पट्टमहादेवी का मार्गदर्शन मिले तो उमड़नेवाला क्रोध भी पीछे सरक जाता है। तुम उस मार्गदर्शन को प्राप्त करने का प्रयत्न करो।"
"वे मिलें तब न? सुबह पूजा-नेम, उपाहार, फिर मन्दिर-निर्माण कार्य की देख-रेख; फिर भोजन, बाद में पाठशाला में पढ़ाने जाना, फिर वहाँ से लौटकर मन्दिर-कार्य का निरीक्षण, भोजन, विचार-विनिमय मन्त्रणालय में, फिर विश्रान्ति । यहाँ आने के बाद उपाहार और दोपहर के भोजन के समय साथ रहने का अवसर
पट्टमहादेवी शान्तला : भाष तीन :: 413