Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 3
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 414
________________ गम्भीर होकर विचार करना अच्छा है।" उदयादित्य ने मत व्यक्त किया। बिट्टिदेव ने पूछा, "तो तात्पर्य यह कि कुछ भगियों को रूपित करना ठीक नहीं, यही तुम्हारी राय है; है न?" "व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक चित्र मुझे प्रिय है, इनमें से किसी को भी अस्वीकृत नहीं किया जा सकता। परन्तु जब वह मूर्त होकर सार्वजनिक रूप में, सामने आ जाय तो लोगों की अलग-अलग तरह की प्रतिक्रयाएँ हो सकती हैं। इसलिए इनमें से कुछ को रूपित नहीं किया जाय, ऐसा मुझे लग रहा है।" उदयादित्य ने कहा। बिट्टिदेव ने कहा, "ऐसे चित्रों को तुम ही बता दो; छोड़ देंगे।" "मैं ही चुनाव करूँ न करूं, यह बात नहीं। पहले से ही हमने शिल्पियों के परिशीलन और उनकी सलाह र छोडमा है। उनका सम्पूर्ण सहयोग हमें प्राप्त हुआ है। अब भी इन्हें, उन्हीं के परिशीलन एवं सलाह पर छोड़..." बीच में ही बिट्टिदेव बोल उठे, "स्थपति पर नियन्त्रण?" "नियन्त्रण नहीं। इससे दो काम बनते हैं। मेरी राय है कि सम्भवतः स्थपति ही स्वयं इन सभी को बताने की इच्छा नहीं रखते।" कहते हुए स्थपति की और देखा। स्थपति ने कहा, "जो जिसे बनाना चाहे, बनावे यही मेरी इच्छा है। इनमें से कोई भी मेरे लिए न बचे, तब भी मुझे कोई चिन्ता नहीं। ''और भी अच्छा हुआ। इन सभी को शिल्पियों की बैठक बुलवाकर उनके सामने रखेंगे। इससे शिल्पियों को भी एक तृप्ति मिलेगी। इन सभी को मूर्तरूप देने की इच्छा उनमें उत्पन्न हो जाय, तो काम का बँटवारा भी अपने आप हो जाएगा। इस बँटवारे के हो जाने के बाद, जो चित्र छूट जाएँगे, उन पर फिर विचार कर लेंगे।" "तुमने जो पहले कहा कि आम लोगों की टीका-टिप्पणी या आक्षेप के पात्र बनने की बात...वह विषय यों ही रह जाएगा...?" बिट्टिदेव ने कहा। "पहले ही बात बता दी जाय तो वे भी अपनी राय दे देंगे।" उदयादित्य ने कहा? __'ठीक. वही करो।" बिट्टिदेव ने कहा। सभा समाप्त हुई। उदयादित्य, स्थपति और अन्य शिल्पिगण मिलकर निश्चित कर लेंगे, यही निर्णय अन्तिम रहा। - इस निर्णय के अनुसार आगे का कार्य हुआ; इन भंगिमाओं में से तीन-चार चित्रों को छोड़कर, शेष सभी चित्रों को शिल्पियों ने चुन लिया। उनके अपने कथनानुसार स्थपति के लिए कुछ भी नहीं बचा।। जो चुनाव में छूट गये, उन भंगिमाओं के चित्रों को लेकर रात के समय 416 :: पट्टमहादेवी शान्तना : भाग तीन

Loading...

Page Navigation
1 ... 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483