________________
समझ के भी लोग रहते हैं। कुछ-का-कुछ अर्थ निकालनेवाले, अपार्थ करनेवाले भी होते हैं।"
"मुझे लक्ष्य करके यह बात कही गयी?"
"नहीं! पहले भी ऐसी ही एक घटना हो चुकी है। सुनना चाहती हो तो बताऊँ, सुनो।"
"बताइए।" "ध्यान से सुनना।" "सन्निधान के कहने की रीति पर एकाग्रता अवलम्बित है।"
"तो अब हमारी परीक्षा हो रही है! छोटों को सन्तुष्ट करने के लिए, बड़ों की परीक्षा...चलो यह भी सही।" कहकर उन्होंने बताया कि धारानगरी के युद्ध में उनके पिताजी ने किस तरह चालुक्य चक्रवर्ती विक्रमादित्य की सहायता की थी; तब चालुक्यचक्रवर्ती की पिरियरसीजी को अज्ञातवास करने बलिपुर में आकर क्यों रहना पड़ा था। इसे उन्होंने विस्तार से समझाया और रत्नव्यास, बूतुगा, गालब्बे, दासब्बे, त्यारप्पा आदि हर एक के बारे में बताया। सम्पूर्ण घटनाचक्र को समझाने के बाद यह बताया कि हेगड़े दम्पती और शान्तलदेवी ने इस सन्दर्भ में किस तरह से व्यवहार किया था। महाराज ने सारी बातों का वर्णन किया; सारी घटनाएँ उसकी आँखों के सामने दृश्यमान सी अनुभव हुई; चकित-सी सुनती, बैठी रही। दोनों-वाचक और श्रोताको समय का पता ही नहीं चला। कहनेसुनने की तन्मयता भावलोक में उन्हें बलिपुर तक ले गयी।"
लक्ष्मीदेवी ने कहा, "यह शुक-सप्तति की कहानी-सी है।"
"यह शुक-पिक की कल्पित कहानी नहीं है। यह वास्तविक घटना है। एक रत्लव्यास को छोड़, शेष सभी व्यक्ति अब भी जीवित हैं।"
एक झूठे दुष्प्रचार ने, एक शंका ने क्या-क्या किया, यह बात उसके मन में आयी होगी-यही भावना महाराज के मन में हुई। उन्होंने पूछा, "इसे सुनने के बाद अब यह बताओ कि शंका करना उचित है?" - "सन्निधान को स्त्री का मनोभान ही समझ में नहीं आया है। वह समझती है कि अपने साथ एक और स्त्री के रहने से वह सुरक्षित है।"
"स्त्री होकर इस बात को पट्टमहादेवी अच्छी तरह जानती हैं। चट्टला हमेशा उन्हीं के साथ रहती है।"
"क्या वह बदचलन? पट्टमहादेवीजी के साथ?''
"ऐसा मत कहो। असली बात न जानकर, जो भी मन में आता है, कहती जाती हो। राजमहल में चट्टला के प्रति बहुत गौरव है।"
"जानती हूँ। लोग उसे पट्टमहादेवी की चहेती समझकर डर से चुप हैं।
412 :; पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन