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था। इसलिए उस कन्या को देखने की मेरी दृष्टि ही कुछ और थी। परन्तु. उसके पिता ने मेरे पिता से बातचीत करके विवाह का मुहूर्त भी निकलवा लिया। बाद में मुझे बताया। मेरी माँ की मृत्यु मेरे बाल्यकाल में ही हो चुकी थी, इसलिए अपनी बस्ती में सूचना देने की आवश्यकता ही नहीं थी। जन्म-पत्री के मिलने पर अच्छा मुहूर्त ठहराया और विवाह सम्पन्न हो गया। विवाह निश्चित करनेवाले ज्योतिषी ने कहा कि यह आदर्श दाम्पत्य होगा और इनकी सन्तति कीर्तिशाली होगी तथा पीछे चलकर महान् मंगलदायक योग होंगे। परन्तु इस फल के लिए इन्हें अपने देश में जाना होगा। यह ज्योतिषियों की भविष्यवाणी थी। हृदयपूर्वक हमें आसीसा भी।"
"उस कन्या की जन्मपत्री आदि को आपने भी देखा था ?"
"नहीं, उस समय मेरा ज्योतिष-शास्त्र का ज्ञात इतना गहरा न था। सामान्य ही था।"
"जितनी जानकारी थी, उसी के सहारे देख लेते?" "नहीं!11 "ई?
"बड़े-बूढ़ों ने जब सब देख लिया था, तो मुझे क्या देखना था? इसलिए नहीं देखा।"
"ठीक, विवाह के बाद आप अपनी बस्ती लौटे?"
"तुरन्त तो नहीं आये। मेरी पत्नी को मेरे यहाँ आना था न। उसके बाद मेरे पिताजी ने कहा कि थोड़े दिन और यहीं मेरे साथ रहे, अब जो कार्य हमने अपने हाथ में लिया है, उसे पूरा कर लेने के बाद, एक साथ अपने गाँव चले जाएँगे।"
"तो आपको वहीं ठहरना पड़ा?" "दूसरा चारा न था। मेरी पत्नी को इससे सन्तोष ही हुआ।" "आपके साथ चलने की उमंग उनमें नहीं दिखाई दी?"
"कुछ नहीं कह सकता। उसका सहवास प्राप्त होकर एक अनमोल जोड़ी मिलने को तृप्ति मुझे मिली थी अवश्य! जब अपने यहाँ जाने की बात कही तो उसने कहा था कि, 'ओह, इतनी दूर जाना होगा?' यह तो नहीं कहा कि नहीं जाएगी। परन्तु मेरे पिताजी की इच्छा के अनुसार थोड़े दिन वहाँ रहने का हुआ तो उसने सन्तोष व्यक्त किया था। उसने कहा-अभी तो यहीं रहना है न, दूर तक जाना तो फिलहाल के लिए स्थगित हुआ, आगे देखा जाएगा।"
"स्त्री के लिए मायका छोड़ जाना इतना आसान नहीं होता, स्थपतिजी। थोड़ा विचार कर देखिए । पाल-पोसकर बड़ा बनानेवाले मायके को छोड़कर, वहाँ के रिश्ते-नाते को तोड़कर, उस समस्त को पाणिग्रहण करनेवाले पसिदेव के
372 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन