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अपराध या अपचार हुआ है?"
"मुझे इसका विवरण नहीं पता। महाराज के वेलापुरी जाने की सूचना मिली थी। प्रस्थान करने का मुहूर्त निश्चित नहीं हुआ था। तब उन्होंने मुझे भी सूचित किया था। उन्होंने कहा था राजदम्पती के साथ यहाँ तक आने की इच्छा है। यह भी बताया था कि राजा से कहा है। मैं भी सोच रहा था कि आएंगे। परन्तु उनके न आने का कारण मुझे पता नहीं चला।'
"अपने साथ उसे न लाने की महाराज की इच्छा स्पष्ट है। तात्पर्य यह कि महाराज की तिरुवरंगदास के बारे में अच्छी राय नहीं। इसका कारण जानना है। अज्ञानवश उसने कोई त्रुटि की हो, उसे समझाकर ठीक करना हमारा धर्म है। समधी होने के व्याज से अनावश्यक स्वान्त्र्यपूर्ण व्यवहारों में लगना, अधिक अधिकार प्रदर्शन उचित नहीं। वह कुछ अधिक ही डींग मारता है। वह एक तरह का धर्मभीरु है। लगता है कि उसने ऐसा कुछ कहा हो। इसलिए यदि आपको कुछ पता हो तो हमसे कहिए।" आचार्य ने कहा।
"आचार्यजी का कहना ठीक है। वे व्यावहारिकता से अनभिज्ञ हैं । इसलिए यों ही कुछ कह बैठते हैं। मैंने भी इस सम्बन्ध में उनको समझाया है।" कहकर उन्होंने जो कुछ उससे कहा था, सो सब कह सुनाया।
___ "ठीक, हमारा सोचना ठीक ही निकला। आप यादवपुरी जाने के बाद, उसे यहाँ भेजिए। हमारी आपस में जो बातें हुई और महाराज के साथ जो बातचीत हुई, इसके बारे में उससे कुछ न कहें।"
"जैसी आज्ञा!"
उस रात को वहाँ रहकर नागिदेवण्णा दूसरे दिन प्रातःकाल यादवपुरी आ पहुंचे। तिरुमलाई तिरुवरंगदास को आचार्यजी का सन्देश सुनाकर उसे आचार्यजी के पास भेज दिया।
महाराज के राजधानी में नयी रानी के साथ इतने आकस्मिक आगमन को लेकर कुछ हड़कम्प-सा मच गया। शान्तलदेवी महाराज के स्वागत के लिए जिस धूमधाम से व्यवस्था करना चाहती थीं, वह थोड़े समय में कर देना सम्भव नहीं था। इसके लिए जितना समय चाहिए था, उतना नहीं था। उस थोड़े समय में ही बड़ी धूमधाम का स्वागत-समारोह हुआ। वेलापुरी को एक नयी शोभा प्राप्त हुई।
नागिदेवण्णा और मंचिअरस उपस्थित नहीं रहे। रानी बम्मलदेवी और
शान्तला : भाग तीन :: 399