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'प्रतिमा निरूपण' स्थान बना। पदमहादेवी ने जो-जो भंगिमाएँ दिखायीं उन्हें स्थपति ने चित्रित कर लिया। कुछ भंगिमाओं के बारे में विनम्र होकर कुछ सूचनाएँ भी टी : T बात को मुचना शान्तलदेवी ने आरम्भ में ही देकर स्पष्ट कहा था कि भाव-भंगियाँ मात्र मेरी हों, पर मेरा रूप उनका न हो, उनको अलगअलग रूपों में बनाना होगा, किसी भी मूर्ति में मेरा चेहरा रूपित न हो। इसके अनुसार ही कार्य हुआ था। पट्टमहादेवी के अन्तःपुर में उन दो-चार दिनों में किसी का प्रवेश नहीं हुआ। स्वयं महाराज के लिए भी प्रवेश नहीं था। ऐसी स्थिति में दूसरों को प्रवेश कैसे मिले? पट्टमहादेवी, स्थपति और चट्टला,ये तीन जन ही रहे। खाने-पीने तक के लिए वहीं व्यवस्था की गयी थी। अन्त:पुर में क्या हो रहा है, इसका किसी को पता न था। इस सम्बन्ध में कुछ न कहने की कड़ी आज्ञा स्थपति और चट्टला को दी गयी थी। चट्टला से कहा गया था कि मायण से भी इस सम्बन्ध में कुछ न कहे? रेविमय्या बाहर पहरे पर रहा। उसे सन्दर्भ ज्ञात था। रेविमय्या से परिचित किसी को भी उससे पूछने का साहस नहीं होता था। मगर इस सम्बन्ध में सबका कुतूहल उठ खड़ा हुआ था। किसी के मन में कोई कुकल्पना या शंका उत्पन्न नहीं हुई थी। परन्तु सभी बातों को और सब लोगों को अभी तक न समझ सकनेवाली रानी लक्ष्मीदेवी के लिए यह समस्या ही हो गयी थी। उसने एक-दो नौकर-चाकरों से पूछा भी। उन लोगों ने कह दिया, "इन सबसे हमारा क्या सम्बन्ध, हमें कुछ भी पता नहीं।" ।
अपने इस कुतूहल को न रोक सकने के कारण रानी ने सीधे जाकर महाराज से पूछ ही लिया।
"दूसरों के विषय में क्यों अनधिकार जिज्ञासा...?"
"पट्टमहादेवी को पराये पुरुष के साथ एकान्त में इतने दिन रहने का क्या रहस्य है, यह नहीं जानना चाहिए?"
"देवी!" बिट्टिदेव की आवाज कड़ी हो आयी थी, दृष्टि में भी क्रोध था। "कुछ अनुचित पूछ लिया?"
"इतने निम्न स्तर का व्यवहार पोयसल रानी के योग्य नहीं। हमें पता है कि वह सब क्या है।"
"सन्निधान जानते हैं कि पट्टमहादेवी स्थपति के साथ अन्तःपुर में एकान्त में रहती हैं। रानी होकर मुझको यह बात नहीं जाननी चाहिए? तो क्या इस दृष्टि से यही न हुआ कि मैं निम्न-स्तर की हूँ?"
"यह निम्न स्तरीय व्यवहार मात्र नहीं, यह तो परम क्षुद्रता है।"
"हाँ, मेरो मति तो क्षुद्र है। मैं निम्न स्तर की हूँ। तो मुझसे विवाह ही क्यों किया था?"
408 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन