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मैंने अपनी पुत्री की तरह तुम्हें पाला-पोसा। तुमको क्या पता कि तुम्हारे माँ-बाप कौन हैं और न मुझे ही पता है । सब लक्षणों से सम्पन्न उत्तम कुल संजात मानकर जन्म-जात वैष्णव की तरह मैंने तुम्हें पाल-पोसकर बड़ा किया। पोयसल राज्य के बारे में यहाँ से आनेवाले यात्रियों से सूचना मिला करती थी। यह समाचार भी संक्षेप में ज्ञाप्त तुझा कि राणा ने श्री याद मन को श्री आचार्यजी से स्वीकार किया है। तब मुझमें एक आशा पैदा हुई। क्यों यह आशा उत्पन्न हुई सो तो ईश्वर ही जानें। यह सत्य बात है कि आशा उत्पन्न हुई अवश्य। आज तुम रानी बनी हो तो वह इसी का फल है। मेरी भी यही अभिलाषा थी। इसीलिए मैं तुमको साथ लेकर यहाँ आया। आचार्यजी ने तो मुझे बताया नहीं। मैं भी उनका शिष्य हूँ, आने के बाद मुझे एक धन्धे की आवश्यकता थी तो यह धर्मदर्शित्व मिला। यथासम्भव आचार्यजी के आदेश का पालन करते हुए मैंने अपनी आशा के अनुसार वांछित फल प्राप्त किया। कैसा और क्या-क्या कियायह सब मत पूछो। क्योंकि मेरे लिए अपने सुख से अधिक तुम्हारा सुख प्रमुख है। तुम्हारे विवाह की समस्या थी। किसके साथ तुम्हारा विवाह हो-यह बात समस्या बनकर मेरे सामने खड़ी थी। तुम्हारे माता-पिता मेरी तरह जन्मजात वैष्णव ब्राह्मण थे या नहीं, पता नहीं। इसलिए मैं किसी वैष्णव ब्राह्मण से तुम्हारा विवाह नहीं कर सकता था। यों किसी कुलशील-हीन से तुम्हारा विवाह कर देना भी नहीं चाहता था। वास्तव में तुम भी औरस पुत्री की तरह मुझे प्यार करती आयो हो। तुम्हारे जीवन को सुखी देखने की मेरी इच्छा भी अनुचित नहीं थी। तुम्हें रानी बनाने का मेरा प्रयत्न भी सफल हो गया। फिर भी इधर कुछ समय से मेरे मन में एक शंका उत्पन्न हो गयी है इसलिए मैं यह जानना चाहता हूँ कि अब तक के इस सजमहल का तुम्हारा जीवन तुम्हें कैसा लग रहा है?"
"इससे बढ़कर भाग्य क्या मिल सकेगा, पिताजी? मैं आपके हाथ में न पड़कर किसी और के हाथ लग जाती तो पता नहीं मेरा जीवन क्या होता? कौन जाने?' लक्ष्मीदेवी ने कहा।
"तुम्हारा भाग्य लिखनेवाला ब्रह्मा भी अपने लिखित को नहीं बदल सकता, बेटी। इसलिए यह भगवान का ही काम है कि उन्होंने तुम्हें मेरी झोली में डाल दिया।"
"हम पूर्वजन्म में पिता-पुत्री ही थे—यही कहना पड़ेगा।"
"अब पूर्वजन्म की बात क्यों बेटी, इस जन्म की ही बात तुम अपने ही वारे में नहीं जानती हो। मैं भी नहीं जानता। तुम्हें छोड़कर मेरा कौन है ? बेटी, मेरा सारा भविष्य तुम पर ही अवलम्बित है। तुम सुखी रहोगी तो मेरी देखभाल ढंग से करोगी। इसलिए तुम्हारे जीवन के बारे में पूछा।"
364 :: पट्टमहादेव शान्तला : भाग तीन