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तौर से सावधान रहकर, समग्र रूप से ही मैंने जन्मपत्री देखी।"
"यह भी कहते हैं कि अपने से सम्बन्धित विषय को स्वयं नहीं देखना चाहिए?"
"तो अपने यहाँ जो घटा उसे सारे गाँव के लोगों के सामने प्रकट कर देना चाहिए था?"
"अच्छा, फिर?" "अभी किसी को मालूम नही किया और कहा गया? "तो आपकी पत्नी अपने गर्भसंजात शिशु का पिता आप ही को समझती होगी
"सो कैसे? वह स्वयं जानती है कि उसने क्या किया?" "यदि जैसा आप समझते हैं वैसा कुछ नहीं हुआ हो तो?" "जन्मपत्री झूठी होगी?" "आपके प्रश्न का उत्तर न देकर मैं स्वयं एक प्रश्न करूँगी, आप उत्तर देंगे?" "यथाशक्ति प्रयत्न करूँगा।"
पट्टमहादेवी ने एक जन्मकुण्डली का सम्पूर्ण विवरण उसकी नवांश कुण्डली को भी बताते हुए बताया। और कहा, "इसके बारे में आप क्या-क्या कह सकते हैं तो सब बताइए।"
"यह तो बहुत बड़ी बात हुई। सन्निधान क्या जानना चाहती हैं सो बताने पर उत्तर देने का प्रयास करूंगा।"
"इस जातक का कैसा भविष्य रहेगा?" "यह किसकी जन्मपत्री है?" "वह आपके लिए प्रधान नहीं। मेरे प्रश्न का उत्तर दीजिए।"
स्थपति ने थोड़ी देर सोचकर खड़िया और पाटी माँगी। पाटो और खड़िया मन्त्रणालय में ही थी, सो शान्सलदेवी ने उन्हें उठाकर दिया।
"सन्निधान ने मुझसे प्रश्न करने की बात पहले से ही सोची होगी, इसलिए पाटी और खड़िया मन्त्रणालय में है।"
"यह मन्त्रणालय है। ये वस्तुएँ यहाँ हमेशा रहती हैं। मैंने कुछ नहीं सोचा था। ज्योतिष से निर्णय करना साध्य है, इस विषय ने इसमें कुतूहल पैदा किया इसलिए पूछा, इतना ही।"
स्थपति ने जन्मकुण्डली और नवांश कुण्डली बनायी। भावकुण्डली भी बनायी; दशांश द्वादशांश कुण्डलियाँ भी बनायीं। अष्टक वर्ग का अंकन किया। सर्वाष्टक वर्गाकन भी कर लिया। त्रिकोणांश का भी हिसाब लगाया। इतना सन्छ होने तक शान्तलदेवी चुप रहीं। सबको अच्छी तरह गुनने के बाद स्थपति ने कहा,
पट्टमहादेवी शान्तला - भाग तीन · : 377