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" ठीक। बम्मलदेवी से कहो कि वे यहाँ आ जायें।" शान्तलदेवी ने कहा । सेविका चली गयी।
बिट्टिदेव के आने के पहले बम्मलदेवी वहाँ पहुँच चुकी थी। बिट्टिदेव को वहाँ उसकी अपेक्षा नहीं थी। दोनों ने उठकर महाराज का स्वागत किया। बिट्टिदेव ने हाथ आगे बढ़ाया। शान्तलदेवी ने उनका हाथ अपने हाथ में लेकर उन्हें पलंग पर बिठाया। उन्होंने उनके हाथ को दबाकर पकड़ लिया।
शान्तलदेवी ने कहा, "ऐसी विकलता क्या...? सन्निधान विश्राम करने के बाद इधर आते या कहला भेजते तो मैं स्वयं उपस्थित हो जाती । "
"एक ही बात है । वाटिका कैसी है?" बिट्टिदेव ने पूछा ।
"उसे देखभाल करने का ज्ञान जिसे न हो, ऐसे की देखरेख में जैसी होना चाहिए वैसी ही है। "
"प्रारम्भिक योजना से कुछ अधिक विस्तृत है। अनेक तरह के पेड़-पौधे लगाये गये हैं। सुनता हूँ कि वे फल-फूल भी रहे हैं।" ब्रिट्टिदेव ने कहा।
"फिर भी एक क्रमबद्ध योजना के अनुसार रूपित नहीं किया गया है। संख्या तो बढ़ी है। तरह-तरह के पौधे भी लगाये गये हैं। परन्तु उनकी ओर ध्यान कुछ कम ही दिया गया है, ऐसा लगता है।"
"ऐसी बात है ? हमारा ध्यान तो उधर गया ही नहीं। अच्छा हो यदि पालियों को बुलवाकर उसे ठीक करवा दें। "
" सामने रहकर काम कराना है। प्रत्येक पौधे की क्यारी को स्वच्छ होना चाहिए। उसमें फूस को उगने नहीं देना चाहिए। उसके उगने पर असली पेड़ या पौधे को जो खाद दिया जाता है, उसे यह फूस ही खा जाएगा। दिया जानेवाला पानी तक यह फूस पी जाएगा। इस तरह की परोपजीवी कुछ बेलें भी उग आयी है। वे मूल वृक्ष का आश्रय लेती हैं, उन्हें ऐसे ही जीना है। परन्तु उससे कभीकभी मूल वृक्ष को अपना अस्तित्व ही मिटा लेना पड़ता है। इस तरह के परोपजीवी पौधे यहाँ बहुत हो गये हैं। माली की लापरवाही से ऐसा हुआ है। उसका ध्यान नये रोपे पौधों पर अधिक हो जाने के कारण पुराने पौधों की ओर उसकी उदासीनता होती गयी, इस वजह से ऐसे परोपजीवी पौधे पनप आये हैं। यही कारण है।" शान्तलदेवी ने कहा ।
" तो एक गहन अध्ययन ही हुआ है, समझना चाहिए।" ब्रिट्टिदेव ने
कहा।
'अध्ययन करके ही जानने योग्य बारीक बातें तो हैं नहीं देखते ही पता लग जाता है कि वे यहाँ बहुत हो गये हैं। यह बदनिका यहाँ आश्रम पाकर इतनी अधिक संख्या में बढ़ गयी हैं कि इससे बगीचे की सुन्दरता ही नष्ट हो जाने
348 :: पट्टमहादेवी शातला भाग तीन
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