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का भय हो गया है।" शान्तलदेवी ने कहा।
'वह सब तो हमारी दृष्टि में नहीं आया। ठीक करने के लिए आदेश दे देंगे तो हो जाएगा।' कहकर बिट्टिदेव मौन हो गये।
रानियों को लग रहा था कि बिट्टिदेव केवल बगीचे के ही बारे में बातचीत करने नहीं आये हैं, क्योंकि यह त एसी उतावली का विषय नहीं था, यह उनकी समझ में आ ही चुका था। वे प्रतीक्षा करती रहीं कि वह आगे क्या कहेंगे, देखें।
बिट्टिदेव ने दो-तीन बार कुछ कहने का प्रयत्न किया, मगर मौन ही रहे । किसी तरह की सन्दिग्धता के बिना महाराज को यह संकोच क्यों? यही सोचकर शाम्तलदेवी ने कहा, "हम समझती हैं कि हमने प्रभु के विश्वास को खो नहीं दिया है।"
बिट्टिदेव किसी धुन में ही थे। मौन तोड़ते हुए बोले, "हमने ऐसा कम कहा? हमारा विश्वास अटल है।"
"ऐसा है तो संकोच किस बात का? हमें लगा कि सन्निधान के हमारे पास इतनी शीघ्रता में आने के लिए कोई विशेष कारण तो होगा ही। सो भी रानी बम्मलदेवी से बात करने के बाद मुझे लगा है कि शायद विषय बहुत सूक्ष्म है क्योंकि असली बात क्या है सो वह भी नहीं जानती हैं। इसीलिए उन्हें भी मैंने बुलवाया है।' शान्तलदेवी ने कहा।
"अच्छा हुआ!" कहकर बिट्टिदेव फिर मौन हो गये।
"सुना कि राजलदेवी के पास भी बुलावा भेजा गया है?" शान्तलदेवी ने प्रश्न किया।
"हाँ, जो भी बात होगी सबसे विचार-विनिमय करने के बाद ही निर्णय करना होगा; इसीलिए यह सब किया है।"
"तो उनके आने तक प्रतीक्षा करेंगे।" शान्तलदेवी ने कहा। "अब तक आ ही जाना चाहिए था।" बम्मलदेवी ने कहा।
"दूर से आना है। कभी-कभी यात्रा जैसी चाहते हैं वैसी नहीं हो पाती। इसलिए तब तक प्रतीक्षा करते बैठना शायद नहीं होगा।"
"ऐसी जल्दी है?" "हाँ, हम किसी काम को पट्टमहादेवी की सम्मति के बिना नहीं करते।"
"पट्टमहादेवी भी सन्निधान की आशा-आकांक्षा को पूर्ण करने में सहयोग देनेवाली ही तो है।" शान्तलदेवी ने कहा।
"इसके लिए रानी बम्मलदेवी साक्षी हैं न?" बिट्टिदेव ने कहा।
"तो क्या अब सन्निधान एक और रानी बनाना चाहते हैं ?'' शान्तलदेवी ने सीधा प्रश्न किया।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 349