________________
एक स्थायी साक्षी बनकर रहेगी। उके वंश की उत्तम सन्तान के द्वारा इस परम्परा की वृद्धि होती रहेगी। परन्तु...मेरे वंश की परम्परा...वह पिताजी तक समाप्तप्राय है। एक सम्पन्न राष्ट्र की भव्य परम्परा स्थगित हो जाएगी। किसी पाप-कर्म का फल लेकर मैं जनमा। अपने वंश की प्रतिभा की इतिश्री ही मैंने कर दी न? यदि मैं भाग्यवान् होता तो मेरे परिवार की भी स्थिति दूसरों के परिवारों की तरह अच्छी ही होती। वह यदि ठीक-ठीक न चल सका, अपने वंश को सत्सन्तान से प्रवृद्ध करने का कारण मैं हुआ होता...न.,.न...सब पागल कल्पना है। जो साधा नहीं जा सकता उसकी और मन जाता है। आज पता नहीं क्यों मन जहाँ कहीं भाग रहा है। हाथ काम में सधता नहीं। बैठे-बैठे सोचते रहने से अच्छा होगा कि एक बार एक चक्कर लगा आवें--यही सोचकर वह वहाँ से बाहर चल पड़ा1 अनेक शिल्पियों की सूक्ष्म कला-कौशल दुपा कारीग को देखत. बाग।
___एक तरफ होयसलाचारी और उनका पुत्र वर्धमानाचारी, दूसरी ओर गदग के काटोज और उसका पुत्र नागोज, और एक तरफ दासोज और उसका पुत्र चावुण, गंगाचारी और उसका भाई कांवाचारी, मल्लण्णा और उसका पुत्र मसद, इनेज उसका पुत्र चिक्कहम्म आदि परिवार एकाग्र भाव से इस नवीन निर्माण कार्य में लगे थे। उसे देखते हुए आगे बढ़ा, उसके हृदय में अव्यक्त आन्तरिक प्रेम की एक विकर लहर दौड़ पड़ी। उसका सारा शरीर तीन स्पन्दनों से स्पन्दित हो उठा। नियमित समय से पहले ही वह अपने निवास स्थान पर जा पहुंचा।
निवास पर पहुँचते ही हाथ-मुँह धोकर चटाई पर पैर पसारकर लेट गया। थोड़ी ही देर में मंत्रणा ने आकर कहा कि भोजन तैयार है।
"मंचणा, आज कुछ गड़बड़-सा है। मैं खाऊँगा नहीं। थोड़ा गरम पानी और एक नीबू दो। तुम खा लो। बाद में देखेंगे।" स्थपति ने कहा।
"वैद्य को बुला लाऊँ ?' मंचणा ने धीरे से पूछा।
"नहीं चाहिए। एक आधा प्रहर विश्राम कर लूँ तो काफी होगा। तुम जाओ!" स्थपति ने कहा। मंचणा गया और थोड़ी देर में ही गरम पानी और करा नीबू ले आया।
'तुमने भोजन किया?" स्थपत्ति में पूछा। "अभी कर लूँगा।" मंचणा ने कहा और नीबू निचोड़ने लगा।
"इसके लिए क्या जल्दी थी, मैंने कहा था न?" स्थपति ने कुछ असन्तोष से कहा।
"मेरे भोजन करने का समय अभी नहीं है। आप आज जल्दी आ गये हैं, ले लीजिए।" उसने गिलास आगे बढ़ाया।
स्थपति बात बढ़ाना नहीं चाहता था, कुछ न कहकर पानी पी लिया और लेट
गया 1
पट्टपहादेवी शान्तला : भाग तोन :: 315