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मन्दिर का कार्य चल रहा था। मायण और स्थपति में शीघ्र ही अच्छा परिचय हो गया, मिलनसारी भी बढ़ी। मायण जानता था कि स्थपति ज्योतिष जानते हैं। इसका उसे प्रत्यक्ष प्रमाण भी मिल चुका था। महासन्निधान को युद्धयात्रा के समय ही मुहूर्त को जानते हुए स्थपति ने कह दिया था कि विजय निश्चित है। वहीं हुआ। इसलिए मायण ने चाहा कि बल्लू की जन्मपत्री उन्हें दिखाकर उसके भविष्य के बारे में जाने। यही सोचकर वह चट्टला के साथ स्थपति के यहाँ गया।
स्थपति के लिए यह आगमन चौंकानेवाला ही था।
भविष्य की बात उठाते ही स्थपति ने कहा, "इसके बारे में कृपया मुझसे न पूर्छ। मैं कुछ भी नहीं कहूँगा।"
"हमने सबकुछ सुख-दुःख देख लिया है और अनुभव भी किया है । विष और अमृत दोनों को पिया है। सन्निधान ने हमारे जीवन के वृत्तान्त को सुना दिया है, इससे हमारे जीवन का समग्र चित्र आपके मन में है। परन्तु हमने अब जो इस सन्तान को पाया है, कम-से-कम उसका जीवन सुखी रहे-यही हमारी अभिलाषा है। इसलिए देखकर कहिए। हीन जीवन बितानेवाली की कोख से जन्मे बच्चे के जीवन के बारे में कढ़ना ही क्या-गों समयकर शहर की दृष्टि हो - देखें।" चट्टलदेवी ने विनीत भाव से कहा।
"माँ, गर्भकाल में किसका जीवन कैसा बनेगा यह कहा नहीं जा सकता। कुछ को तो कष्ट आ पड़ते हैं तो कुछ स्वयं ही कष्टों को बुला लेते हैं। आपका जीवन प्रवाह में अटका हुआ था। सन्निधान ने उसका निवारण कर आप लोगों का उद्धार किया है, जिसे आप अपना पुनर्जन्म कहते हैं। आप दोनों के तन-मन एक कर फलस्वरूप यह पुत्र है। इसलिए आप लोग इसके भविष्य के विषय में किसी तरह की शंका न रखें। अब आप लोग जब पूछने जो आये हैं, यह समय बहुत ही प्रशस्त है। आपका बेटा बड़ा कीर्तिशाली होकर जिएगा। आप लोगों के लिए इतना जान लेना ही पर्याप्त है, इसलिए इससे अधिक..." स्थपति ने कहा।
"आपका आशीर्वाद ही हमारे लिए बहुत है। हमें भगवान की कृपा से प्राप्त यह सन्तान कीर्तिशाली होकर जिए यही बहुत है। हमने जैसा अपना जीवन राजपरिवार के लिए धरोहर कर रखा है, वैसा ही वह भी करे; यही अभिलाषा है।" चट्टला ने कहा।
"भगवान् की यही इच्छा थी, इसीलिए उन्होंने आय लोगों के जीवन को सुन्दर बनाकर सत्सन्तान देने की कृपा की। आप लोग भाग्यवान हैं।"
"यह सब मेरे पतिदेव की उदारता है। यदि उनमें यह उदारता न होती तो मैं एक सड़ी-गली नारकी बनी पड़ी होती। उनके शुद्ध प्रेम से मेरा यह अपवित्र शरीर पवित्र हुआ। स्त्री के जीवन की सार्थकता इसी में है. कि उससे प्रेम प्राप्त
पट्टमहादेवो शान्तला : भाग तीन :: 323