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ओर चले गये।
आगे उन लोगों ने कोई बातचीत नहीं की।
चट्टला के शिशु-जन्म की प्रसन्नता फैल गयी। अभी दो-तीन दिन से वह चाह रही थी कि अपने बच्चे को पट्टमहादेवी, रानियों और सन्निधान को दिखाए। राजमहल में वातावरण भी अभी शान्त था। राजकुमारी के स्वास्थ्य सुधरने के बाद हो रेविमय्या ने विनती की। तुरन्त सम्मति भी मिल गयी। वास्तव में विषयान्तर की इच्छा भी थी। ये दम्पती शिशु के साथ आकर सहायक ही बने।
चट्टला को राजमहल की बहुत-सी बातें मालूम नहीं थीं। इस प्रसंग के कारण वे सब मालूम हुई। शान्तलदेवी को तो मायण-चट्टला का जीवन इस तरह सुखमय बन जाने की सूचना पाकर अत्यन्त सन्तोष हुआ। उसे भरे हृदय से उन्होंने व्यक्त भी किया।
बम्मलदेवी और राजलदेवी को चट्टला-मायण के जीवन के विषय में सारी बातें मालूम थीं। वे दोनों भी उस खुशी में केवल भागीदार ही नहीं थी, उसे व्यक्त भी कर रही थी-"चट्टला, तुम्हारा जीवन इतना सुन्दर और ऐसा फलप्रद बना इसमें पट्टमहादेवी भी सहायक हैं। किसी पूर्वजन्म के तुम्हारे पुण्य ने तुमको उनके हाथों में सौंपा। बिगड़ा जीवन बन गया। पोय्सल साम्राज्य की भलाई के लिए तुम दोनों ने प्राणों की भी परवाह न कर परिश्रम किया है। राष्ट्र-गौरव के सामने अपने व्यक्तिगत मानापमान को तुच्छ मानकर प्रमाणित किया है कि राष्ट्रगौरव सबसे बढ़कर है। आप लोगों ने जो फल पाया है वह अनन्त काल तक कीर्तिवान होकर जीये।" बप्पलदेवी ने कहा।
"क्या नाम रखा है शिशु का?" राजलदेवी ने पूछा। "बल्लु"-चट्टला ने कहा। "पहले राज करनेवाले महास्वामी का नाम है ?"
"हम उन्हें बचा न सके। परन्तु उनको उदारता को हम भूल नहीं सकते। वह नाम हमारे लिए परम पूज्य है। बच्चे को वही नाम दें तो उनकी स्मृति हमारे दिलों में स्थायी रह जाएगी।"
"इसे क्या बनाने का विचार है?" बम्मलदेवी ने पूछा। "हम पोय्सलसेवक किस योग्य हैं?" चट्टला ने कहा।
"हम सब सेवक हैं। मैंने पूछा कि उसको गुल्म-नायक बनाएंगे या सवार नायक?"
"सन्निधान उन्हें हेग्गड़े बना चुके हैं।" चट्टला ने कहा।
"हैं, मैं तो भूल ही गयी थी। विजयोत्सव के बाद मायण हेगड़े बना न?" बम्मलदेवी ने कहा।
पट्टमहादेतो शान्तला : भाग तीन :: 187