________________
थीं... तुम पर सन्देह करनेवाले तुमसे पूछकर सन्देह करेंगे ?... पुरानी घटनाओं को अनुभव करके भी जब तक प्रत्यक्ष नहीं देखूँ तब तक केवल अनुभूति पर आधारित होकर संशय नहीं करती... उनकी इस बात की पृष्ठभूमि में ही उसकी चिन्ताएँ रूप धारण करती गयी थीं। प्रत्यक्ष देखने पर संशय के लिए अवसर ही कहाँ रहता है ? है या नहीं का निर्णय तभी हो जाता है। फिर इतनी बुद्धिमती होकर भी उन्होंने ऐसी बात क्यों कही ? पीछे चलकर वे खुद कहेंगी तो मालूम तो हो ही जाएगा। वह कोई बड़ी बात नहीं। परन्तु शिल्पी हरीश को मेरे ऊपर शंका करने की क्या आवश्यकता, क्यों भला? उसकी अन्तर्वाणी ने कहा, 'तुमने भी एक बार सन्देह किया न ? तुमने पूछा ? तुमने तो अपने आप निर्णय कर लिया न? मैंने शीघ्रता नहीं की। उचित प्रमाण मिला तो निर्णय किया। मेरा निर्णय ठीक ही है। मैं इसे प्रमाणित कर सकता हूँ। स्वयं भगवान् ही सामने आवें तो प्रमाणित कर दिखा दूंगा।' यो मन एक स्थान पर टिक गया। इसी स्थिति में पता नहीं कब उसकी आँख लग गयी।
दूसरे दिन सुबह रोज की तरह ब्राह्म मुहूर्त में नहीं जागा सामान्यतः स्वयं पहले जाग जाता था। और तब मंचणा को जगाता था। आज मंचणा कुछ घबराकर ठठा, आँखें मलकर देखा, बगल के पलंग पर अभी भी शिल्पीजी सो रहे हैं। तुरन्त पिछवाड़े की ओर जाकर आकाश की ओर देख लौटा और सोचने लगा कि जगाएँ या नहीं। बिना कुछ ओढ़े सोये हुए शिल्पी के माथे पर हाथ रखकर देखा। फिर कुछ निश्चिन्तता की साँस ली, फिर जगाया। वह उठ बैठा, आँख मलकर मुँह पर हाथ फेरा और बोला, "ओह । आज तुम मुझसे पहले जग गये।" फिर अपने नैमित्तिक कार्यों से निबटने के लिए चला।
रोज की तरह मन्दिर निर्माण के उस स्थान पर आया, एक चक्कर लगाकर चारों ओर देख माया । इसी में उसे आधा प्रहर लग जाता था।
रेखा-चित्र के अनुसार दृढ़ नींव पर तीन हाथ ऊँचा चबूतरा तैयार हो गया था। अब दीवार उठाने का काम शेष था। इसके लिए नीचे से लेकर मुखद्वार के आधे भाग तक भित्ति चित्र निर्माण कार्य का बंटवारा किया गया था। इन चित्रों को दीवार में पंक्तिबद्ध रीति से जोड़ना था । प्राणी, पेड़-पौधे, लताएँ आदि आकर्षक चित्र, नृत्य-भंगिमाएँ, वाद्यवृन्द, पौराणिक कथा - गाथाएँ — ये सब पंक्तिबद्ध हो दीवार में उकेरने की योजना थी। शिल्पियों में काम बैंटा हुआ होने पर भी पंक्तिबद्ध होनेवाले उन भिन्न-भिन्न चित्रों की उस भिन्नता में एकता लाने की योजना थी शिल्पी की। इसलिए उनका लक्ष्य, स्थूल रूपरेखा, विषय-सूची आदि शिल्पी ने दी थी तो भी शिल्पियों को उसके अनुसार निर्माण करने की स्वतन्त्रता थी। अपने प्रतिदिन की इस चला फिरी में प्रत्येक शिल्पी से विचार-विनिमय कर
पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन : 273