________________
करेंगे। स्थपत्ति के आवास पर भी सूचना भेज दो।"
"जो आज्ञा ।" नौकरानी चली गयी।
शिल्पी अकचका गया। बैठा देखता रहा। 'राजमहल में भोजन. मेरे लिए? आज दोपहर को ठीक से भोजन न करने की सूचना राजमहल में पहुँच गयी? इसका तात्पर्य हुआ कि राजमहल मेरे बारे में विशेष सतर्कता रखता है। मुझ जैसे एक साधारण व्यक्ति पर इतना ध्यान देनेवाला यह राजमहल, इस पट्टमहादेवी का यह कलाप्रेम कितना महान् है!' शिल्पी को यही लगने लगा।
"देखिए स्थपतिजी, दण्डनायक के आने तक समय है; आप चाहें तो बल्लू के माँ-बाप की जीवन-कथा सुनाऊँ।" शान्तलदेवी ने कहा।
शिल्पी शिष्य की तरह बैठ गया। कछ बोला नहीं।
शान्तलदेवी ने चट्टला-मायण की पुरी कहानी विस्तार के साथ कह सुनायी। फिर बताया, "उनका जीवन जलकर राख हो गया था। दोनों में प्रेम उत्पन्न कर, जीवन को भव्य बनाकर, प्रेस के प्रतीक रूप में बल्लू को पाकर वह चट्टला, अब अपने जीवन को सार्थक मान सन्तुष्ट हुई। परन्तु मुझे आश्चर्य इस बात का है कि वह सिरजममाः इतना निर्दगी म है? राष्ट्र के लिए, अपने महाराज के लिए, प्राणों की आशा छोड़कर ऐसे कर्तव्यनिष्ठों को कष्ट में डाल देता है। वे दोनों बहुत बुद्धिमान हैं। श्रेष्ठतम गुप्तचर हैं। परन्तु इस तलकाडु के युद्ध में वे दोनों शत्रुओं की कैद में हैं। कल शाम ही सूचना मिली। बच्चा दो-तीन दिन से बहुत तंग कर रहा था। कल उसे सँभालना ही कठिन हो गया। ऊपर से यह सूचना आयी। उस बच्चे के निर्मल हृदय में अव्यक्त शक्ति के कारण ही अपने मातापिता की कष्टदायक स्थिति की अनुभूति होने से शायद ऐसा हुआ हो। आज दिनभर वहाँ से सूचना मिलने के बाद कई काम होने थे। इसलिए उधर आ न सकी। बस्लू आज सुखी और स्वस्थ है।" शान्तलदेवी ने कहा।
चुपचाप सब सुनकर शिल्पी बोला, "असाध्य...विश्वास करना कठिन है।" "किस पर, जो मैंने कहा?" शान्तलदेवी ने पूछ।।
"न, न, उस बारे में मैंने यह बात नहीं कही। कुछ और घटना स्मरण हो आयी इसलिए कहा।"
"वह क्या है, पूछ सकती हूँ?" "आज नहीं, फिर कभी देखेंगे।"
"वही कीजिए। विश्वास के अभाव में मन शंका में पड़कर छटपटा रहा है। जब तक यह स्थिति रहेगी तब तक यही सही। महासन्निधान के अग्रज बल्लाल प्रभु की सासजी थीं। वे हमारे प्रधान गंगराज की बहिन थीं। उनके मन में एक आशा उत्पन्न हुई कि अपनी बेटी को पट्टमहादेवी बनाएँ। उस आशा को पूरा बनाने के लिए
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 279