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वेलापुरी को समाचार भेजा था। वहाँ विचार-विमर्श होने के बाद गुप्तचरों के एक दल को ही तलकाडु के अन्दर घुसकर काम करने के लिए भेज दिया। यह गुप्तचर दल दक्षिण और दक्षिण-पूर्व से तलकाडु में घुसकर चट्टला-मायण को छुड़ा लाने का प्रयत्न करने लगा। इस काम के लिए समिल जाननेवाले चरों का ही एक दल भेज दिया गया। वे तरह-तरह के वेशों में घूम-फिरकर भिन्न-भिन्न मार्गों से तलकाडु की ओर चले। यह सूचना भी युद्धशिविर को पहुँचायी गयी। इन सारे प्रयत्नों से भी कार्य शीघ्र होने की आशा नहीं की जा सकती थी। यह काम ही ऐसा था कि इस तरह की व्यवस्था में कुछ समय चाहिए था। फिर यह भी कहा नहीं जा सकता था कि इस प्रयत्न का परिणाम क्या होगा। इसलिए कुछ-न-कुछ प्रयत्न युद्धशिविर से करने के बारे में विचार-विनिमय करने के उद्देश्य से सभा जुटायी गयी। इसमें गंगराज उदयादित्य, बम्मलदेवी, पुनीसमय्या. माचण दण्डनाथ महाराज के साथ थे।
"सलकाडु में प्रवेश करना कठिन काम है। सूचना मिली है कि तलकाडु के अन्दर प्रवेश करना या वहाँ से बाहर निकलना, दोनों ही कार्य असम्भवप्राय हो गये हैं। इसलिए इधर से प्रवेश पाना सम्भव ही नहीं।" माधण दण्डनाथ ने कहा।
"रात के समय घुस आना सम्भव नहीं?" बम्मलदेवी ने प्रश्न किया।
"शायद हो सकेगा। परन्तु तलकाह के भीतर-बाहर की और आस-पास की भौगोलिक परिस्थितियों को जाननेवाला ही इसे कर सकता है। मगर हमारे पास ऐसे लोग बहुत कम संख्या में हैं। यदि वे जाने का साहस भी करें तब भी उनसे चट्टला-मायण को छुड़ाकर लाना सम्भव नहीं हो सकेगा।" गंगराज ने कहा।
"ऐसा नहीं, काफी संख्या में हमारे लोग अन्दर घुस जायें और वे चोलों के बीच घबराने योग्य अफवाहें फैला दें जिससे उनमें खलबली मच जाय; युद्ध के आरम्भ में ही उनके नैतिक बल को तोड़ देना चाहिए।" बम्मलदेवी ने कहा।
"यह प्रयत्न भी किया जा सकता है। वेलापुरी से जो गुप्तचर दल पहुँचा है वे पता नहीं क्या करेंगे। उनका काम होता रहे। पर हम कितने दिन चुप बैठे रहें? कल ही आक्रमण कर दें तो नहीं होगा?" उदयादित्य ने पूछा।
"हमें वहाँ की व्यवस्था के विषय में सही जानकारी नहीं मिली है। एक चर किसी तरह खिसककर चला आया तो उससे पता लगा कि चट्टला और मायण बन्दी हैं। वैसे यह सुनी-सुनायी बात भी पता लगी कि उनको संख्या कितनी है। वहाँ दस सहस्त्र सैनिक हैं, और दस सहस्र की प्रतीक्षा है।" गंगराज ने कहा।
"उसके पहुँचने के पहले ही हम क्यों न आक्रमण कर दें?" उदयादित्य ने कहा।
"हम उसी उद्देश्य से आये हैं। लेकिन हमें न्यूनतम हानि में विजय मिलनी
282 :: पट्टमहादेवी शान्तल्ला : भाग तीन