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"उनको जाँच के बाद ही पता चलेगा कि तुम लोग गुप्तचर हो या यात्री।" दामोदर ने कहा।
"उनकी जाँच जितनी शीघ्र कर लेंगे उतनी ही शोघ्र हमें मुक्ति मिल जाएगी। इस शीघ्रता के लिए हम आपके आभारी होंगे।" चट्टला बोली।
"जब इच्छा होगी तब करेंगे। तुम्हें क्या? तुम लोगों को कोई कष्ट तो नहीं। तुम लोग अपने पूजा-पाठ में रमे रहो। तुम लोगों के भोजन, अल्पाहार आदि की व्यवस्था कर दी गयी है। परन्तु तब तक तुम लोगों के पीछे सशस्त्र पहरेदार रहेंगे ही। यदि तुम लोगों को अपनी यात्रा पूर्ण करनी हो तो चुपचाप पड़े रहो। नहीं तो शीघ्र ही तुम्हें स्वर्ग भेज दिया जाएगा।'' दामोदर ने कहा।
"हाय! हाय! ऐसा मत कीजिएगा। हम सन्तान-प्राप्ति के उद्देश्य से यात्रा कर रहे हैं। कम-से-कम कोई-न-कोई भगवान् हम पर इतनी कृपा करें: आप ही बताइए इतना समय बीतने पर भी सन्तान प्राप्ति नहीं हुई तो हमें कितना दुःख हुआ होगा? हमारी साथिनें अब तक तीन-तीन बच्चों की माँ बनी फिर रही हैं। सिर्फ मैं..." रोने की-सी सूरत बनाकर चट्टला ने कहा।
"बात तक न करनेवाले इस मूल पति से तुमको सन्तान हो भी कैसे सकती है?" दामोदर ने एक व्यंग्यपूर्ण हँसी हँसकर कहा। मायण को गुस्सा चढ़ रहा था। चट्टला ने उसकी ओर देखा और कहा, "देखिए जी, आप बड़े पद पर हैं। हम जैसों को ऐसा दुःख नहीं देना चाहिए। हम दुःख में हैं, आप ऐसा विनोद क्यों करते हैं? बच्चा दे सकने की शक्ति उस भगवान् ने आपको दे रखी हो तो आप ही कृपा करें। हम मना थोड़े ही करते हैं। और फिर हमें तो वंशोद्धारक सन्तान चाहिए। है न जी?" कहती हुई चट्टला ने पायण की ओर देखा। उसकी दृष्टि में याचना थी-ऐसा दामोदर को लगा। परन्तु मायण को उसमें दूसरा ही संकेत जान पड़ा।
"हाँ जी, महाराज! मेरी पत्नी जो कहती है, उससे मैं भी सहमत हूँ। आपमें वह शक्ति हो तो आप ही कृपा कीजिए। यहाँ के वैधेश्वर महादेव और मनोन्मणी महादेवी की कृपा हमें मिले-ऐसी कृपा करें। मरने तक आपका नाम स्मरण करते रहेंगे। आपके इस उपकार को हम भूलेंगे नहीं। तब आपको मालूम होगा कि हम कैसे लोग हैं ?" मायण ने कहा।
उसकी बात सुनकर दामोदर हँस पड़ा। "हँसते क्यों हैं, महाराज?" मायण ने पूछा।
"तुम जैसे पागल लोग भी हैं न? यही जानकर हँसी आयो।" दामोदर ने कहा।
"मैं कहती हूँ तो ये मानते नहीं। महाराज कहें तो उसका मूल्य है। अच्छी सरह
784 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन